________________
११४ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम
.........
१. बाह्य तप और
२. आभ्यंतर तप। बाह्य तप आभ्यन्तर तप का कारण रूप है। उसके छः प्रकार ये हैं(१) अनशन
आहार संयम (२) ऊनोदरी
आहार संतुलन (आहार-संयम) (३) भिक्षाचरी
अभिग्रह आदि के साथ विधिपूर्वक भिक्षा ग्रहण
करना। (इन्द्रिय संयम) (४) रस परित्याग- प्रणीत स्निग्ध एवं अति मात्रा में भोजन का त्याग।
(इन्द्रिय संयम) (५) काय क्लेश- शरीर को विविध आसन आदि के द्वारा कष्ट
सहिष्णु बनाकर साधना तथा उसकी चंचलता कम .
करना। (शरीर संयम) (६) संलीनता
शरीर, इन्द्रिय, मन, वचन आदि तथा कषाय आदि । का संयम करना, एकांत शुद्ध स्थान में रहना। .
(शरीर-संयम) बाह्य तप के ये छः भेद हैं।
आत्म संयम रूप आभ्यंतर तप के भी छः प्रकार हैं(१) प्रायश्चित्त- दोष विशुद्धि के लिये सरलता पूर्वक प्रायश्चित्त आदि
करना। (स्वदोष दर्शन) (२) विनय
गुरुजनों आदि का आदर, बहुमान एवं भक्ति करना।
(परगुण-दर्शन) . . (३) वैयावृत्य- गुरु, रोगी, गण, संघ आदि की सेवा करना।
(स्वार्थवृत्ति का विलोपन और परार्थवृत्ति का
प्रगटीकरण।) (४) स्वाध्याय
शास्त्रों का अध्ययन, अनुचिंतन एवं मनन करना। (स्व की अनुभूति के लिये लिया जाने वाला
आलम्बन।) (५) ध्यान
मन को एकाग्र कर शुभ ध्यान में लगाना (स्वाध्याय
का परिणाम) (६) व्युत्सर्ग
कषाय आदि का त्याग करना, शरीर की ममता छोड़कर उसे साधना में स्थिर करना एवं आवश्यक होने पर संघ आदि का भी त्याग करना। (ध्यान का परिणाम।)
ल