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________________ आराधक से आराध्य १११ . ९. काल का अभिग्रह लेकर अर्थात् अमुक समय तक अधर्म प्रवृत्ति का त्याग करके धर्मप्रवृत्ति में स्थिर होने का अभ्यास करना-सामायिक व्रत है। १०. सर्वदा के लिए दिशा का परिमाण निश्चित कर लेने के बाद भी उसमें से प्रयोजन के अनुसार समय समय पर क्षेत्र का परिमाण निश्चित करके उसके बाहर अधर्म कार्य से सर्वथा निवृत्त होना-देशविरति व्रत है। ११. अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा या दूसरी किसी भी तिथि में उपवास धारण करके और सब तरह की शरीर विभूषा का त्याग करके धर्म जागरणा में तत्पर रहना-पौषधोपवास व्रत है। १२. न्याय से उपार्जित और जो खप सके-ऐसी खान-पान आदि के योग्य वस्तुओं का विधियुक्त शुद्ध भक्तिभाव पूर्वक सुपात्र को दान देना जिनसे कि उभय पक्ष को लाभ पहुंचे-अतिथिसंभाग व्रत है। क्षण-लव ___ "क्षण" और "लव' ये दोनों कालवाचक शब्द हैं। क्षण याने मुहूर्त का छठा भाग, ४८ मिनिट का छठा भाग याने आठ मिनिट जितना काल। “लव' याने मुहूर्त का ७७वां भाग। क्षणलव का उपलक्षणात्मक अर्थ संवेग, भावना और ध्यान विशेष अभिप्रेरित होता है। मुक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी भी इच्छा या अभिलाषा का नहीं होना संवेग है। जो परिणामों की स्थिरता होती है उसका नाम ध्यान है, और जो चित्त का एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में चलायमान होना है वह भावना है। भावनाओं का ध्यान में ही अन्तर्भाव नहीं होता है। क्योंकि, ध्यान और भावना दोनों ज्ञानप्रवृत्ति के विकल्प हैं। जब अनित्यादि विषयों में बार-बार चिन्तन धारा चालू रहती है तब वह ज्ञानरूप है और जब उनमें एकान्त चिन्तानिरोध होकर चिन्तनधारा केन्द्रित हो जाती है, तब वह ध्यान कहलाती है। ज्ञान का एक ज्ञेय में निश्चल ठहरना ध्यान है और उससे भिन्न भावना है। - किसी एक इष्ट वस्तु में मति का निश्चल होना ध्यान है। पुनः पुनः चिन्तन करना अनुप्रेक्षा कहलाता है। . आत्मा, अनात्मा आदि सम्बन्धों पर विचार करने से मन में एक जागृति, एक निर्वेद की लहर उठती है, जो आत्मा को वैराग्योन्मुखी बना देती है। __यह निर्वेद जो ज्ञानपूर्वक होता है, हमारी एक अन्तर्मुखी चेतना है। यह जाग्रत चेतना ही आगे चलकर ध्यान एवं समता का रूप धारण करती है। अतः भावना की १. ज्ञातासूत्र-अभयदेव सूरि कृत वृत्ति, पत्र-१३०/१।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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