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________________ मेरे धन्यवाद के पात्र परम सहयोगिनी भगिनी साध्वी बा. ब्र. दर्शनप्रभाजी और बा. ब्र. अनुपमाजी हैं, जिन्होंने मेरी सामाजिक प्रवृत्तियों को सम्हालकर अध्ययन का अवसर प्रदान किया और समय-समय पर कार्य-प्रगति में योग्य सहयोग दिया। अपने शुभाक्षरों द्वारा इस प्रबन्ध को सजाने वाली बा. ब्र. साध्वी भव्यसाधनाजी को भी धन्यवाद देना उचित समझती हूं। शोध कार्य में आने वाली अनेक प्रतिकूलताओं को दूर कर अनुकूलता बनाए रखने हेतु अनेकों संघों और व्यक्तियों का अवसर-अवसर पर सहयोग मिलता रहा है। सहयोग प्रदान करने वाले कांदीवली और कांदावाड़ी श्री संघ, गिरीशभाई, किशोरभाई कोठारी आदि की सहृदय आभारी हूँ। विशेष-विशेष आभारी तो मैं अंधेरी के प्रतापभाई मेहता की हूं जो पुस्तक आनयन की प्रवृत्ति में प्रारम्भ से लेकर पूर्णाहुति तक सेतुबंध रूप रहे हैं। उन्होंने निबन्ध कार्य की विधि में आने वाली विशेष समस्याओं में मुझमें विशेष निष्ठा जगाकर सत्परामर्श द्वारा समस्याएं सुलझाने का हार्दिक प्रयास किया है। - अंत में मैं उन सभी सन्तों, महानुभावों, इष्टमित्रों, लेखकों को धन्यवाद देती हूं जिनकी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहायता मुझे सदैव प्राप्त होती रही तथा जिनकी रचनाओं का उपयोग शुभ आशीर्वाद एवं शुभकामनाओं से मेरा यह शोधकार्य सम्पन्न हुआ है। महानिबंध की सम्पन्नता के बाद (१९८१) से अनुयोग .प्रवर्तक पू. कन्हैयालालजी म. सा. 'कमल', उपाचार्य पू. देवेन्द्रमुनिजी म. सा. आदि की प्रेरणा और अनेक व्यक्ति एवं संघों के अत्याग्रह के बाद भी इसे प्रकाशित करने के विचारों के प्रति मैं उदासीन रही क्योंकि प्रारंभ से ही उज्ज्वल-समुदाय प्रकाशन के प्रति विचार निरपेक्ष रहा है। आज जयपुर श्री संघ के अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय कॉन्फ्रेन्स के उपाध्यक्ष श्री उमरावमलजी चोरडिया ने मेरी इस विचारग्रंथि का विमोचन किया और अखिल भारतीय कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष श्री पुखराजजी लुंकड की प्रेरणा से परम निर्ग्रन्थ आचार्य युगल आत्म-आनन्द शताब्दी वर्ष में इस प्रबंध को ग्रंथ का रूप और आकार मिला। परमात्म कृपा से प्रस्तुत इस ग्रंथ में छद्मस्थता के कारण मुझसे कोई भी त्रुटि रह गई हो तो सर्व प्रवचनदेव-शासनदेव और श्रुतदेव से. क्षमा याचती हूं। . अरिहंत का अनुग्रह, महापुरुषों का योगबल आपके जीवन का सफल वरदान बन जायं और परमात्मतत्त्व की खोज में भक्ति और आराधना के सम्यक् पथ पर सहायक सिद्ध हो जाय ऐसी शुभाशा के साथ विराम लेती हूं। -साध्वी दिव्यप्रभा शरद-पूर्णिमा-आत्म-आनंद शताब्दी वर्ष . आत्म नगर, लुधियाना [१३]
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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