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________________ .......... ................. आराधक से आराध्य १०१ - आत्मानुशासन में सम्यग्दर्शन के दस प्रकारों में नववा एवं दसवां अवगाढ़ और परमावगाढ़ सम्यग्दर्शन बताया है। यहाँ स्पष्ट करते हुए कहा है कि अंग और अंगबाह्य (उपांग) श्रुत का अध्ययन करके जो सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है उसे अवगाढ़सम्यग्दर्शन कहते हैं। केवलज्ञान के द्वारा देखे गये पदार्थों के विषय में जो रुचि होती है वह यहाँ परमावगाढ़ सम्यग्दर्शन इस नाम से प्रसिद्ध है। अर्थात् अवगाढ़ सम्यक्त्व श्रुतकेवली को और परमावगाढ़ केवली भगवान को होता है। तीन प्रकार १-सम्यग् दर्शन, २-मिथ्यादर्शन और ३-सम्यग् मिथ्या दर्शन। दूसरी तरह से सम्यक्त्व के तीन प्रकार हैं-१-औपशमिक, २-क्षायिक और ३-क्षायोपशमिक। दूसरे प्रकार से तीन प्रकार के सम्यक्त्व इस प्रकार हैं-कारक, रोचक और दीपक। वीतराग प्रभु द्वारा प्ररूपित अनुष्ठानधर्म का योग्य आचरण करना तथा देववंदन, गुरुवंदन, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि करना कारक सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व क्रिया में रुचि अवश्य होती है। परन्तु पापोदय से रुचिमात्र होती है, सक्रियता नहीं होती है। यह रोचक सम्यक्त्व है। यह अविरत सम्यग्दृष्टि जीव को होता है जैसे सम्राट श्रेणिक। ___ जैसे दीपक पर को प्रकाशित करता है परन्तु अधःस्थान को प्रकाशित नहीं कर सकता (दीपतले अँधारो) वैसे इस सम्यक्त्व वाले अभव्य या मिथ्यादृष्टि होने पर भी अन्यों को उपदेश देकर उनमें सम्यक्त्व उद्भूत करा सकते हैं। जैसे-अंगारमर्दक आचार्य। तीसरे प्रकार से तीन प्रकार के सम्यक्त्व - श्रीमद् राजचंद्रजी ने इन सबसे अलग तीन प्रकार के सम्यक्त्व दर्शाये हैं १-शुद्ध सम्यक्त्व-आप्त पुरुष के वचनों की प्राप्ति रूप, आज्ञा की अपूर्व रुचिरूप और स्वच्छंद निरोध युक्त आप्तपुरुष की भक्तिरूप शुद्ध सम्यक्त्व। २-परमार्थ सम्यक्त्व-परमार्थ की स्पष्ट अनुभूति। ३-वर्धमान सम्यक्त्व-निर्विकल्प परमार्थ अनुभूति। इनमें प्रथम सम्यक्त्व द्वितीय सम्यक्त्व के और द्वितीय सम्यक्त्व, तृतीय सम्यक्त्व के कारण रूप हैं। चार प्रकार के सम्यक्त्व तीन प्रकार में बताये गये औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक में चौथा सास्वादन मिलने पर सम्यक्त्व के चार प्रकार होते हैं। १. आत्मानुशासनम्-श्लोक ११ । २. आत्मानुशासनम्-श्लोक १४ ।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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