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________________ ९८ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम १-प्रकृतिबंध-कर्म का मूल स्वभाव या प्रकृति। जीव के सद्गुणों को. जो वस्तु रोकती है उसे प्रकृति कहा जाता है, ऐसी वस्तु का जब जीव के साथ सम्बन्ध होता है तब उसे प्रकृतिबंध कहा जाता है। २-स्थितिबंध-कर्मों की प्रकृति जितने समय के लिए जीव के साथ रहती है उस काल को स्थिति कहते हैं। कर्म के कालपरिणामस्वरूप बंध को स्थिति-बंध कहते हैं। ३-अनुभागबंध-कर्म का तीव्र मंदादि रस रूप परिणामविशेष अनुभागबंध है। ४-प्रदेशबंध-सामान्यतः परमाणु एक प्रदेशावगाही होते हैं। वैसे एक परमाणु का ग्रहण एक प्रदेश है। जीव कर्मबन्ध के द्वारा अनंत परमाणुओं को ग्रहण करता है। ये परमाणु यदि विस्तृत होते हैं तो अनन्त प्रदेशी बन जाते हैं, अतः अनंत प्रदेश का बंध . कहा जाता है। यथाप्रवृत्तिकरण नदी में वर्षों से लुढ़कता पत्थर कालगति से लुढ़कते-लुढ़कते अपने आप गोल और . चिकना बन जाता है। जैसे किसी धान्य-पात्र में थोड़ा-थोड़ा अनाज डाला जाय. और . अधिकाधिक निकाला जाय, ऐसा करने से कभी समस्त धान्य समाप्त हो सकता है उसी प्रकार चिरसंचित कर्मरूप धान्य पात्र में आत्मा कभी किसी प्रकार से अनाभोग द्वारा अल्प कर्म को ग्रहण कर अनल्प का क्षय कर ग्रन्थिभेद को प्राप्त कर. यथाप्रवृत्तिकरण में प्रवेश करता है। अपूर्वकरण अपूर्व अर्थात् भवचक्र में भटकते हुए, परिभ्रमण करते हुए कभी भी नहीं प्राप्त हुए आत्मा के अध्यवसाय जो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अवस्था-विशेष में वर्तते हैं, उसका नाम अपूर्वकरण है। ___इस करण में आत्मा का अपूर्व वीर्योल्लास जागृत होता हैं। शुभ अध्यवसाय के विकास का यहाँ प्रारम्भ होता है। साधक आत्मा यहाँ स्वयं के प्रबल वीर्य द्वारा इस "अपूर्वकरण" (मनः परिणाम) द्वारा ग्रन्थियों का भेदन कर डालता है। इस करण में प्रवेश करते ही जीव प्रथम समय में ही-१-अपूर्व स्थितिघात, २-अपूर्व रसघात, ३अपूर्व गुणश्रेणी और ४-अपूर्व गुण संक्रमण-ऐसी चार क्रियाओं का प्रारंभ करता है। स्थितिघात ___ स्थिति अर्थात् बँधे हुए कर्मों के आत्म-प्रदेशों के साथ बड रहने का कालमान। अपूर्वकरण में उन स्थितियों का अपूर्व-घात करता है। रसघात ___ अशुभ प्रकृतियों की सत्ता में रहे हुए रसाणुओं के अनंत भाग कर उसमें से एक अनंतवें भाग को छोड़कर शेष सर्व रसाणुओं का अन्तर्मुहूर्त में घात कर दिया जाता है।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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