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________________ ९६ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम भारतीय दर्शन में बलदेव उपाध्याय लिखते हैं, "दर्शन" शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-दृश्यते अनेन इति दर्शनम्-जिसके द्वारा देखा जाय वस्तु का सत्यभूत तात्त्विक स्वरूप। हम कौन हैं ? कहाँ से आये हैं ? इस सर्वतो दृश्यमान् जगत का सच्चा स्वरूप क्या है ? इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई ? इस सृष्टि का कौन कारण है ? यह चेतन है या अचेतन ? इस संसार में हमारे लिये कौन से कार्य कर्तव्य हैं ? जीवन को सुचारु रूप से बिताने के लिये कौनसा सुन्दर साधन-मार्ग है ? आदि प्रश्नों का समुचित उत्तर देना दर्शन का प्रधान ध्येय है। ___ आचारांग सूत्र के अन्तर्गत श्रमण भगवान महावीर के केवलज्ञान के समय हुई . अनुभूतियों एवं प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए लिखा है-तत्पश्चात् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर ने आत्मा का और लोक का स्वरूप जानकर ........... धर्मकथन किया। दर्शन की व्याख्या ___दर्शन शब्द की विशेष महत्वपूर्ण व्याख्या करते हुए कहा है-"सुहे आयपरिणामे पण्णत्तं"-आत्मा का शुभ परिणाम दर्शन है। आत्मा का शुभ परिणाम कैसा होता है इसे । स्पष्ट करते हुए कहते हैं, यह प्रशस्त सम्यक्त्व मोहनीय पुंज के वेदन से, उपशम से या क्षय से प्रकटित होता है। __ दूसरी व्याख्या है-जो वस्तु जैसी हो उसको ठीक वैसी ही जानना, उसमें वैसी ही श्रद्धा करना दर्शन है। जिनप्रणीत भावों में यथार्थता का विश्वास कार्यरूप दर्शन है और मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम आदि से प्रकटित शुद्ध आत्मपरिणाम कारणरूप दर्शन है। तत्वपदार्थों के यथार्थ स्वरूप को जानना और उसमें भावपूर्वक श्रद्धा करने को दर्शन कहा है। ___ दर्शन की तीसरी व्याख्या होती है-देव, गुरु और धर्म ये तीन तत्त्व हैं; आत्मा में शुभभावों से इनकी प्रतिष्ठा करना दर्शन है। दर्शन का स्वरूप और प्राप्ति के उपाय अनादि-अनंत संसार में जीव एवं जड़, ये दो पदार्थ मुख्य हैं। जड़ कर्मों का आत्मा के साथ योग होने से आत्मा सर्वथा मुक्त न होकर संसार में रहता है। इन कर्मों की विभिन्न ग्रन्थियाँ एवं स्थितियाँ हैं। इन जटिल एवं विचित्र विविध ग्रन्थियों के कुटिल जाल में जीव अनादि काल से बँधा हुआ है। सम्यक्त्व प्राप्ति का सारा रहस्य इसी में समाया हुआ है। बाह्य उपचार के किसी भी प्रयोग में साधक तब तक सफल नहीं रह सकता जब तक इस भेद-ज्ञान को न जान पाए। १. भारतीय दर्शन-बलदेव उपाध्याय-उपोद्घात-पृ. ३ । .
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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