________________
आराधक से आराध्य ९१
४. प्रशास्तृ-स्थविर-धर्मोपदेश तथा शिक्षा देने वाले को कहते हैं। ५. कुल स्थविर-कुल की व्यवस्था को तोड़ने वाले व्यक्ति को दंडित करना कुल
स्थविर का काम है। ६. गण स्थविर-सज्जनों की रक्षा, दुष्टों को दंड इस तरह की नीति जिस
समुदाय में हो उसे गण कहते हैं। उस गण को सुचारु रूप से संचालित करने
वाले गण-स्थविर कहलाते हैं। ७. संघ स्थविर-संघ की सुरक्षा और रक्षण-शिक्षण तथा पोषण करने वाले
आचार्य संघ स्थविर हैं। ८. जाति स्थविर-जिसकी आयु ६० वर्ष से अधिक हो और जो संघ व्यवस्था में
कुशल हो, वह जाति-स्थविर माना जाता है। - ९. श्रुत स्थविर-स्थानांग और समवायांग सूत्रों के ज्ञाता श्रुत स्थविर कहलाते हैं।. १०. पर्याय स्थविर-२0 वर्षों से अधिक दीक्षा पर्यायवाला पर्याय स्थविर कहलाता
है। . तप संयम, श्रुताराधना तथा आत्मसाधना आदि साधक जीवन के उन्नायक कार्य जो संघ-प्रवर्तक द्वारा साधकों के लिए नियोजित किये जाते हैं, उसमें जो साधक अस्थिर हो जाते हैं, इनका पालन करने में जो कष्ट मानते हैं या इनका पालन करना जिनको अप्रिय लगता है, उन्हें जो आत्म-शक्ति-सम्पन्न दृढ़वेत्ता श्रमण उक्त अनुष्ठेय कार्यों में दृढ़ बनाता है, वह स्थविर कहा जाता है। बहुश्रुत वात्सल्य . बहुश्रुत-श्रुतज्ञान की विशेषता हो, वे "बहुश्रुत' कहलाते हैं। बहुश्रुत भी तीन प्रकार के होते हैं। जैसे-१. सूत्र बहुश्रुत, २. अर्थ बहुश्रुत, ३. तदुभय बहुश्रुत। सूत्रों का विशाल ज्ञान रखने वाले “सूत्र-बहुश्रुत" होते हैं। सूत्रों के अर्थ की विशिष्ट जानकारी वाले “अर्थ-बहुश्रुत' होते हैं और सूत्र तथा अर्थ दोनों के विशेषज्ञ "तदुभयबहुश्रुत" होते हैं। सूत्र-बहुश्रुत की अपेक्षा अर्थ बहुश्रुत (गीतार्थ) प्रधान होते हैं और अर्थ बहुश्रुत की अपेक्षा तदुभय बहुश्रुत प्रधान होते हैं।
बहुश्रुत मुनिवरों की भक्ति करने वाले के ज्ञानावरणीय कर्म की विशेष निर्जरा होती है और ज्ञानवृद्धि में अनुकूलता होती है। श्रुतज्ञान की वृद्धि से आत्मा केवलज्ञान के निकट पहुंचती है। उत्तराध्ययन के ११वें अध्ययन में बहुश्रुत और अबहुश्रुत के लक्षण और स्वरूप दर्शाते हुए कहा है____ इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती है-अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य।
चौदह प्रकार से व्यवहार करने वाला अविनीत कहलाता है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता है। जो बार-बार क्रोध करता है, जो क्रोध को लम्बे समय तक बनाये