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________________ ८८ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम प्रवचन वात्सल्य अरिहंत और सिद्ध भगवान् की भक्ति के बाद तीसरा उपाय प्रवचन वात्सल्य है। प्रवचन का एक अर्थ है-जिनेश्वरों का उपदेश। प्रवचन को मोक्ष मार्ग का निर्देशक मानते हुए कहा है-इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं नेआउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं। दूसरा अर्थ-निग्रंथ प्रवचन का धारक एवं प्रचारक चतुर्विध संघ होता है। इसलिए साध, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतर्विध संघ भी "प्रवचन" कहलाता है। तीर्थ की प्रवृत्ति तीर्थंकर के उपदेश से होती है। तीर्थ की उत्पत्ति का आधार ही निग्रंथ प्रवचन है। तीर्थाधिपति के प्रथम उपदेश-प्रवचन के बाद तीर्थ की स्थापना होती. है। इसलिए निग्रंथ-प्रवचन के फलस्वरूप निष्पन्न हुए तीर्थ को भी "निग्रंथ-प्रवचन".. कहा गया है। कार्य में कारण का उपचार होना आप्तजन सम्मत है। अतएव चतुर्विध संघ भी निर्ग्रन्थ-प्रवचन है। निर्ग्रन्थ-प्रवचन निवृत्ति-प्रधान है। बन्धजन्य क्रिया की निवृत्ति और मोक्ष-साधना में प्रवृत्ति, निर्ग्रन्थ प्रवचन का लक्षण है। - प्रवचन का स्वरूप यह है१. प्रवचन यथावस्थित सकल जीवादि पदार्थों का प्ररूपक होता है। २. वह अत्यन्त निर्दोष और अन्यों से अज्ञात ऐसे चरण और करण की क्रिया का आधार है। ३. त्रैलोक्यवर्ती शुद्ध धर्म संपत्ति से युक्त ऐसी महान आत्माओं ने जिन प्रवचन का आलंबन लिया है। ४. प्रवचन अचिन्त्य शक्ति से संपन्न है, अविसंवादी है, श्रेष्ठ नाव, समान है। इस अर्हत्-प्रवचन में विश्व के जीव-अजीवादि समस्त पदार्थों के यथार्थ प्रकाशक जीवों के सूक्ष्म एकेन्द्रिय तक के अनेक प्रकार, आत्मा के शुद्धाशुद्ध स्वरूप की विस्तृत हकीकत, अजीव द्रव्यों में विशेषतः पुद्गल का और उसमें भी कर्म पुद्गल का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विस्तृत स्वरूप, तथा विश्व की विस्तृत व्यवस्था का स्वरूप मिलता है। जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आम्नव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष इन नवतत्त्वों में समा जाने वाले निखिल चराचर जगत का स्याद्वाद-अनेकांतवाद की शैली से यथावस्थित प्रकाशक अर्हत् प्रवचन है। __ अरिहंत परमात्मा का सान्निध्य एवं वात्सल्य करने का सरल एवं सुन्दर उपाय प्रवचन-वात्सल्य है। इसीलिये कहा है अस्मिन् हृदयस्थे सति, हृदयस्थस्तत्वतो मुनींद्र इति । हृदयास्थिते च तस्मिन्नियमासर्वार्थसंसिद्धिः ॥१ १. षोडशक-प्रकरण-२/१४।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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