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आराधक से आराध्य ८३ निर्दोष, निष्काम और अनस्वार्थ स्नेह वात्सल्य और भक्ति ही है। वत्सल भावों में वत्सलता-वात्सल्यम्। यह शब्द माता-पुत्र के प्रेम के सम्बन्ध में भी प्रयोग किया जाता है। ___ संसार के अन्य समस्त स्नेह-सम्बन्धों का विच्छेद हो जाने पर ही ये वात्सल्यसप्तक उजागर होते हैं। यह वात्सल्य सांसारिक-लौकिक वात्सल्य-भाव से तो कई गुणा अधिक अलौकिक आंतरिक-वैभव से संपन्न होता है। पर अनुबन्धरहित अन्य स्नेहसम्बन्ध-त्याग ही इसकी भव्य भूमिका या दिव्य पृष्ठभूमि है। वात्सल्य सप्तक का प्रवेशद्वार है “वोच्छिन्दं सिणेहमप्पणो'-अपने समस्त स्नेह एवं संबंधों का त्याग करके ही कोई भी वीतराग हो सकता है। वीतरागी के प्रति किये जाने वाले अनुराग में विराग का उद्भव है। परम विराग की जन्म-स्थली वीतरागी के प्रति अनुराग है। ऐसे वात्सल्य को तो पढ़ने और लिखने की अपेक्षा आत्मसात् करना अधिक महत्वपूर्ण एवं विशेष रसप्रद है। . __वात्सल्य के इसी गौरव और वैशिष्ट्य ने हिन्दी काव्य साहित्य के भक्तिकाल में सूरदास और तुलसीदास जैसे कवियों की कलमों को रससिक्त बनाया। इसके प्रभाव
और आकर्षण में उन्होंने कृष्ण और राम की बाल-लीलाओं को वात्सल्य में ढालने का प्रयास किया। ___ प्रस्तुत वात्सल्य-सप्तक की गहराई में उतरने पर यह निर्णय हो सकता है। सचमुच रुचि, प्रीति एवं वात्सल्य रहित जीवन नीरस है। परंतु वात्सल्य के प्रस्तुत स्थान सर्वथा सुलभ तो नहीं होते क्योंकि इनमें तो मुक्तिदान का परम विधान रहा है। अतः इसकी अप्राप्ति में बेचारे जीव अपने समस्त राग-भाव को संसार में निरर्थक बहाकर सुखप्राप्ति का निष्फल प्रयास करते हैं। कुछ कर्मांशों से आत्मा निरावरण होती है तब उसे इस दिव्यदुर्लभ वात्सल्य-सप्तक की उपलब्धि होती है। प्राप्ति के पश्चात् प्रयोग भी तत्काल जीव नहीं कर सकता। अतः सत्त्वसंपन्न आत्मा पौद्गलिक-प्रीति से निरन्तर छूटता हुआ, ऐसे परम वात्सल्य स्थानक का आराधन करता हुआ तीर्थंकर नामकर्म का निकाचित बंध कर लेता है। ___ वात्सल्य किसी आत्म स्वरूप विशेष आत्माओं से हो सकता है। आत्म स्वरूप जगाने वाले किन्हीं गुणों से नहीं। अतः यहाँ ऐसे परम-आत्म स्वरूप गुणज्ञ दर्शाये गये हैं। इस प्रकार इन बीस स्थानकों में सात गुणी के हैं, शेष तेरह गुण स्वरूप स्थानक हैं। अंशतः गुणवान् तथा भष्य आत्मा महागुणियों का आदर कर, गुणों को स्वीकार करके ही सफल हो सकता है। ___ अब प्रश्न होता है इन वात्सल्य-सप्तक में तीसरा वात्सल्य स्थान प्रवचन है। यद्यपि यह स्थानक गुणी का नहीं है; परंतु गुणवान् व्यक्तियों से कथित, या स्थापित तीर्थ या श्रुत ही प्रवचन रूप माना जाता है और वह सदा आदरणीय रहा है। केवलज्ञान की