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________________ 13. उनके पाण्डित्य के विषय में हम ज्यादा नहि लिखेंगे, क्योंकि स्वयं कृति ही उसे बोल रही है । . .. ईडर (गुजरात) स्थित श्री आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरजी शास्त्र संग्रह से [ प्रत क्रमांक ९८९] ६ पृष्ठ की एक प्रत मिली है। इस कृति का नाम है 'हीरसुन्दर काव्य' । टिप्पणी वाले इस काव्य के कर्ता है श्री देवविमल गणी । - हीर सुन्दर काव्य के 121 लोक प्रमाण प्रथम सर्ग एवं उसकी टिप्पणी उपलब्ध है । मुनिश्री दर्शनविजयजी की मान्यतानुसार पं. देवविमल गणी ने पहले हीर सुन्दर काव्य बनाया था और तत्पश्चात् उस में परिवर्तन करके 'हीर सौभाग्य महाकाव्यम् ' बनाया था ॥ [ जैन सत्य प्रकाश, वर्ष १५, अंक १ ] ॥ हीर सुन्दर काव्य का प्रथम सर्ग तो उपलब्ध हुआ है ॥ आगे सर्जन हुआ होगा या नहि यह तो कोई प्रत ही कह सकती है ॥ अन्तिम कामना न्याकरण के अध्ययन के पश्चात् इस ग्रन्थ के अनुशीलन से संस्कृत भाषा को ठोस आधार दिया जा सकता है ॥ विद्वानों से अनुग्रह है कि वे इस ग्रन्थ को अपने अध्यापन में विशेष रूप से स्थान दें। जैन उपाश्रय . वाव ( वाया डीसा, गुजरात ) , कार्तिकी पूर्णिमा, वि. २०४२
SR No.002262
Book TitleHeer Saubhagya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevvimal Gani, Shivdatta Pandit, Kashinath Sharma
PublisherKalandri Jain S M Sangh
Publication Year1985
Total Pages980
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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