________________
तृतीयः सर्गः
.
पति के द्वारा अनुनय करने पर भी प्रिया ने, अप्रिय करने वाले उसको नहीं चाहा । किन्तु जब उसने कहा कि यहां बाहुबली का त्रास है तो वह तत्काल आकर उसके गले से लिपट गई।
७६. एता बाहुबलिः काचिदिति कान्तोक्तिभापिता ।
___ कण्ठं जग्राह कान्तस्य , निम्नीभूतस्तनद्वयम् ॥
पति ने अपनी प्रिया से कहा—'यहां बाहुबली आने वाले हैं।' इतना कहते ही उसने भयभीत होकर अपने पति के कंठ पकड़ लिए-उसको गाढ़ आलिंगन में बांध लिया। इस भय के कारण ही उसके दोनों स्तन नीचे की ओर झुक गए।
८०. काचित् कान्ता प्रियं ग्रामगत्वरं वीक्ष्य सत्वरम् ।
आलम्ब्याञ्चलमित्यूचे , त्राता मां कोप्युपद्रवे ?
एक सुन्दरी ने अपने पति को ग्राम की ओर प्रस्थान करते हुए देखकर जल्दी से उसके अंचल को पकड़ते हुए कहा—'उपद्रव होने पर मुझे कौन बचायेगा ?'
८१. संग्रामायोद्यतं कान्तं , काचिदित्याह कामिनी ।
नाथ ! त्वद्विरहे नाहमलं स्थातुमपि क्षणम् ॥
कोई सुन्दरी संग्राम के लिए उद्यत अपने पति को देखकर बोली-'नाथ ! आपके बिना मैं एक क्षण के लिए भी नहीं रह सकती।'
८२. सस्नेह काचिदित्याह , मयि प्रीतिर्न तादृशी ।
क्षीरकण्ठेपि नोत्कण्ठा , कृतयुद्धोद्यमं प्रियम् ॥
किसी सुन्दरी ने युद्ध के लिए तत्पर पति से प्रेमभरी वाणी में कहा—'नाथ! मेरे प्रति भी आपकी वैसी गहरी प्रीति नहीं है और न बच्चे के प्रति वैसी उत्कंठा है (जैसी मैं युद्ध के प्रति आपकी प्रीति और उत्कंठा देखती हूं।)
८३. चापमासज्य कण्ठेषु , कान्ताकङ्कणलक्ष्मसु ।
सन्निपत्य भयाद् वीरास्तस्थुरास्थानमण्डपे ॥
प्रिया के कंकणों द्वारा चिन्हित कंठों में धनुष को धारण कर, भय से एकत्रित होकर . वीर सुभट सभाभवन में आ बैठे।
१. आस्थानमंडपं—सभा-भवन (आस्थानगृहमिन्द्रकम्-अभि० ४।६३)