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________________ - भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् साक्षी होगा । क्रोध के भार से लाल आंखों वाले इन व्यक्तियों की क्रियाओं में विश्व का शुभ-अशुभ देखने वाला केवल एक सूर्य ही होगा। ६१. इति वीरगिरं शृण्वन् , सिंहनादमिव द्विपः। - शौर्यस्यायतनं बाहुबलेर्देशं चरोऽत्यजत् ॥ हाथी जैसे सिंहनाद को ससंभ्रम सुनता है वैसे ही वीरों की ये बातें सुनता हुआ वह दूत शौर्य के आयतन बाहुबली के देश को छोड़कर चला गया। . ... ६२. धनुर्बाणाञ्चितकरान् , धनुर्वेदानिवाङ्गिनः । पार्वतीयान् महोत्साहानिव मूर्तान् भटानसौ ॥ ६३. दूरलक्षीकृताकाशसञ्चरविहगान् क्वचित् । दग्धस्थाणूपमाकारानपितश्वापदापदः ॥ सर्वतश्चञ्चलाकारान् , द्रुमशाखाधिरोहिणः। नानाफलरसास्वादतत्परान् वानरनिव ॥ ६५. भूपतिर्भरताधीशो , जेतुं तक्षशिलेश्वरम् । . आगन्ता वर्त्मनाऽनेन , रोत्स्यतेऽस्माभिरन्तरा। ६६. कषायैरिव संसारी , नगैरिव नदीरयः। ददर्श बहलीभूपभक्तानित्यभिधायिनः ॥ --पञ्चभिः कुलकम् । दूत ने हाथ में धनुष्य-बाण लिए हुए पार्वतीय सुभटों को देखा, मानो कि धनुर्वेद शरीरधारी हो गया हो । उनमें महान् उत्साह उछल रहा था, मानो कि वह मूर्तिमान् हो गया हो। कई पार्वतीय लोग दूर आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को लक्ष्य कर बाण छोड़ने की तैयारी में थे। कहीं-कहीं जंगली जानवरों को भी भयभीत कर देने वाले, जले हुए लूंठसी काली आकृति वाले मनुष्य मिले । चंचल आकृति वाले कुछ लोग बन्दरों की भाँति वृक्षों की शाखाओं पर चढ़ने और विविध फलों के रसास्वादन में तत्पर थे। वे सोच रहे थे कि भारत के अधिपति महाराज भरत इसी मार्ग से तक्षशिला के राजा बाहुबली को जीतने के लिए आयेंगे । हम उनको बीच में ही रोक देंगे, जैसे कषाय संसारी प्राणी को और पर्वत नदी के वेग को रोक देता है ।' दूत ने इस प्रकार की चर्चा में संलग्न बाहुबली के भक्त पार्वतीय लोगों को देखा। १. अपितश्वापदापद:-अर्पिता श्वापदेभ्यः आपदो यः, ते, तान् । २. अन्तरा (अव्यय)-बीच में (मध्येऽन्तरन्तरेणान्तरेऽन्तरा-अभि० ६।१७४ ।) '.
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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