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________________ ५६ . . भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् . ३८. अप्युत्तरीयमस्यांसान्निपपातेति तद्भयात् । एतत्संपर्कतो नाशो , निश्चयाद् भविता मम ॥ दूत की भुजाओं पर रखा हुआ उत्तरीय भी इस भय से नीचे गिर पड़ा कि इसके संपर्क से मेरा नाश निश्चित ही होने वाला है। ३६. उच्चैः पदादयं वीरः , पातयत्येव मां किल। शीर्षादस्य पपाताध , इतीवालकवेष्टनम् ॥ 'यह वीर बाहुबली मुझे निश्चित ही ऊंचे स्थान से नीचे गिरा देगा'- यह सोचकर दत की पगड़ी सिर से नीचे आ गिरी। ४०. . अस्मान निर्वसनानेवं , मा पश्यन्तु सभासदाः । इतीवास्य ह्रिया मग्नं, रोमभिः स्वेदपाथसि ॥ । ... . 'सभासद हमें निर्वस्त्र न देखें'- इस · लज्जा से दूत के रोएं पसीने के पानी में डूब गए। .. ४१. निर्वारिरिव कासारो , निःपत्र इव पादपः । निस्तेजा इव शीतांशुः , स सभ्यैरप्यदृश्यत ॥ सभासदों ने दूत को बिना पानी वाले तालाब, बिना पत्तों वाले वृक्ष और निस्तेज चन्द्रमा की तरह देखा। ४२. आयातः केन मार्गेण , केन यास्यामि वर्मना। ___ इत्यूहिनं त्वमुञ्चस्तं , करे धृत्वा बहिर्जनाः ॥ . 'मैं यहाँ किस मार्ग से आया था और किस मार्ग से जाऊंगा'-इस प्रकार तर्कणा करने वाले दूत को लोगों ने हाथ पकड़ कर बाहर निकाल दिया। ४३. पञ्चास्यादिव सारंगः , सर्पवक्त्रादिवोन्दुरः। आदाय जीवितं सोथ , निर्गतो राजमन्दिरात् ॥ जैसे सिंह के मुंह से निकला हुआ हरिण और सर्प के मुंह से निकला हुआ उंदर अपनी १. अलकवेष्टनम्-पगडी।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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