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________________ तृतीय: सर्ग: जैसे समुद्र नदियों से उसको इनका गर्व न हो, क्योंकि उनके दायाद -- हिस्सा लेनेवाले बहुत हैं । ३३. ३४. ५५ व्याप्त है वैसे ही भरत भी सभी लक्ष्मियों से व्याप्त है । किन्तु ३५. मद से विह्वल बना हुआ बन्दर भूमी पर लटकती हुई वृक्ष की शाखा पर चढ़कर क्या हाथी का तिरस्कार कर सकता है ? आरूढस्तरुशाखाग्रं वनौकाः क्षितिलम्बिनम् । किं गजस्य तिरस्कारं करोति मदविह्वलः ? ३६. " इस पृथ्वी पर जब तक सूर्य और चन्द्र रहेंगे तब तक हम दोनों (भरत, बाहुबली ) उपमान और उपमेय के रूप में उदाहृत रहेंगे' । इसलिए हमें कभी भी मर्यादा का लोप नहीं करना चाहिए । ३७. 1 उपमानोपमेयाभ्यामाचन्द्रार्कं भुवस्तले । युवामुदाहरिष्येथे, तन्न लोप्या स्थितिः क्वचित् ॥ दूत ! तुम शीघ्र ही जाकर भरत से कहो कि मदोन्मत्त हाथी का मद सिंहनाद से दूर हो जाता है । दूत ! त्वं सत्वरं गत्वा कथयेरिति सोदरम् । • मत्तस्य हि गजेन्द्रस्य सैंही वेडा मदापहा ॥ , इत्युदात्ता गिरस्तस्य वैरिहृत्स्फोटनोत्कटाः । नाराचा इव तीक्ष्णाग्राश्चख्नुश्चारहृदान्तरम् ॥ " बाहुबली की उदात्त, वैरियों के हृदय को विदीर्ण करने में उत्कट और बाणों की तरह तीक्ष्ण प्रभाग वाली वाणी ने दूत के हृदय को कुरेद डाला । संनिधायिन्यहं चास्य, निर्जीवा माऽभवंतराम् । इतीवास्य तनुः कम्पं वहतिस्म तदा मुहुः ॥ g. बाहुबली की बातें सुनकर दूत का शरीर यह सोचकर काँप उठा कि ' मैं इस दूत के पास हूं, कहीं निर्जीव न हो जाऊँ ।' १. कोई भी भाई-भाई लड़ेंगे तो यह कहा जाएगा कि ये 'भरत- बाहुबली की भांति लड़ रहे हैं ।'
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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