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________________ - भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् जो राजा नहीं झुकते थे उनको झुकाकर, जो छत्र धारण करते थे उनको छत्रहीन करके, महाराज भरत अपने नगर को लौट आए। क्योंकि पराक्रमी व्यक्तियों के लिए कुछ भी आश्चर्यकारी नहीं होता। ७१. षट्खण्डखण्डीकृतकाश्यपीन्द्र छत्रः स वर्षायुतषड्भिरेवम् । आयात ऊर्चीकृततोरणाङ्कां , वास्तोष्पति'ामिव राजधानीम् ॥ छह खंडों के राजाओं के छत्रों को खंडित करने वाले महाराज भरत साठ हजार वर्षों तक विजय-प्रयाण कर देवभूमि में इन्द्र की भांति, तोरणों से सज्जित अपनी राजधानी अयोध्या में लौट आए। ७२. . सर्वेपि शक्रप्रमुखा धुलोकादेत्यादधुस्तस्य च तीर्थतोयः । __राज्याभिषेकं सजगत्यधीशाः , पुरातनः कोपि विधिर्न लोप्यः ।। प्राचीन परम्परा के अनुसार देवलोक से इन्द्र आदि प्रमुख देवतागण तथा सभी राजेमहाराजे वहां एकत्रित हुए और तीर्थस्थल के पानी से महाराज भरत का राज्याभिषेक किया। क्योंकि किसी भी प्राचीन विधि का लोप करना उचित नहीं है। ७३. महीशितुर्दादशवर्षमात्र, जातेभिषेकेऽपि न कोऽपि बन्धुः। आयातवानित्थमनेक शङ्काशङ्कुप्रभिन्नं हृदयं बभूव ॥ चक्रवर्ती भरत का राज्याभिषेक हुए बारह वर्ष बीत गए। अब तक भी कोई भी भाई नहीं आया तब उनका हृदय अनेक शंका रूपी भालों से बींध गया। ७४. स एव बन्धुः समये य एता , तदेव सौजन्यमजातदौष्ठ्यम् । स एव राजा न सहेत योत्राहमिन्द्रतां कस्यचिदुद्भटस्य । वही बन्धु है जो समय पर आता है। वही सौजन्य है जिसमें दुष्टता नहीं है। वही राजा है जो किसी वीर की अहमिन्द्रता को सहन नहीं करता। ७५. न बन्धुषु भ्रातृषु नैव ताते , न नात्र संबन्धिषु राज्यकृद्भिः। स्नेहो विधेयो न यशःशितांशौ , तेषां पयोदन्ति यदेतदेव ॥ । १. काश्यपीन्द्र:-काश्यपी–पृथ्वी, तस्या इन्द्रः-स्वामी-राजा। २. वास्तोष्पति:-इन्द्र (सुत्रामवास्तोष्पतिदल्मिशक्रा:-अभि० २।८६). ३. शङ कु:-भाला (शल्यं शंको-अभि० ३४५१)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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