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________________ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् पूज्य पिता ऋषभ के प्रिय पुत्र के रूप में विश्रुत नमि और विनमि ने धरणेन्द्र के मुख से विद्याएं प्राप्त की थों। जब ऋषभ प्रवजित हुए तब उनको वैताढ्य. गिरि, जो भारतवर्ष को दो भागों में विभाजित करता है, का महधिक राज्य प्राप्त हुआ। अलंघनीय और सेना से सुशोभित उन दोनों ने भरत चक्रवर्ती के आगे बढ़ते हुए सुषेण सेनापति को मार्ग में ही रोक लिया, जैसे नदी के वेग को पर्वत रोक लेते हैं। ५२. वैमानिकैः स्यन्दनसन्निविष्टैरधोमुखैरूर्ध्वमुखैश्च बाणः ।। संपादितोल्कं बहुधा प्रवृत्तः, खगामिभिभू मिचरैनिघर्षात् ॥ ... ५३. तौ द्वादशाब्दी भरतेन साधं , वितेनतुर्द्वन्द्वमनिन्द्यसत्त्वौ'। सुरासुराणामपि चित्रदायि , विन्ध्याचलेनेव गजौ मदान्धौ ॥ . - . -युग्मम् । श्लाघनीय बल वाले नमि और विनमि ने भरत के साथ बारह वर्षों तक युद्ध किया। उस युद्ध में विमान में प्रारूढ आकाशगामी विद्याधरों के बाण नीचे की ओर आ रहे थे और रयों में बैठे हुए भरत चक्रवर्ती के भूमीचर सैनिकों के बाण ऊपर की ओर जा रहे थे। बार-बार फेंके जाने वाले बाणों के संघर्षण से उल्काएं गिर रही थीं। उस समय ऐसा लग रहा था मानो कि दो मदान्ध हाथी विन्ध्य पर्वत से टक्कर ले रहे हों। वह युद्ध देव और असुरों के लिए भी आश्चर्यकारी था। ५४. अभङ्गुरं भारतवर्षनेतुर्दष्ट्वा बलं तौ स्वसुतामदत्ताम् । स्त्रीरत्नलाभान् मुदितः स सार्वभौमोपि ताभ्यामददाच्च राज्यम् ॥ जब उन दोनों ने देखा कि भरत का बल अटूट है तब उन्होंने अपनी पुत्रियां भरत को ब्याहीं । चक्रवर्ती भरत स्त्री-रत्न के लाभ से मुदित हुए और उन दोनों को अपनाअपना राज्य लौटा दिया। ५५. एवं शरच्चन्द्रमरीचिगौरं , पूर्वापराम्भोधिगतान्तमेषः । ___ आदाय वैताढ्यगिरि चचाल , विद्याभृतां श्लोकमिवातितुङ्गम् ॥ इस प्रकार चक्रवर्ती भरत वैताढ्यगिरि पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़े मानो कि विद्याधरों के शरद् ऋतु के चन्दमा की भांति धवल और अत्युन्नत तथा पूर्व से पश्चिम समुद्र पर्यन्त फैले हुए यश को लेकर आगे बढ़ रहे हों। १. बाण इत्यत्न करणे तृतीयाऽन्यत्र कतरि–पञ्जिका पत्र। २. अनिन्द्यसत्त्वी-श्लाघनीयबलौ । .
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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