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... भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् है। तुम उसको शान्त करो। बादल की जलधारा तो दूर , उसका गरिव भी चातक. को आनन्दित कर देता है।
तास्ताः समस्ता इति बाललीलाः' , सोत्कण्ठमातेनुरदोमनो नः । ___ दन्ताबलानामपि दूरगानां , क्रीडाभुवो विन्ध्यगिरेरिवाद्य ॥ जैसे दूर जंगल में विचरण करनेवाले हाथियों को विन्ध्य पर्वत के क्रीडा-स्थल उत्कंठितः करते हैं, वैसे ही आज वे सारी बाल-लीलाएं मेरे मन को उत्कंठित कर रही हैं । ६. यस्यासमऽज्येष्ठतयाहमेव , बन्धुः स बन्धुर्भरतोद्य दृष्टः ।
___ त्वदर्शनाद् दूत ! पयोदकालः , शतहूदा दर्शनतो हि वेद्यः ॥ भरत का मैं ही छोटा भाई हूँ। तुम्हें देखकर मैं मानता हूं कि मैंने. भाई भरत को देख लिया। क्योंकि बिजली को देखकर वर्षाकाल जान लिया जाता है।... ७. एनं भुजाभ्यामपसार्य दूरात् , प्रसह्य ताताङ्कमहं निषण्णः। ..
__ तातेन ते ज्येष्ठ इति प्रसाद्य, भ्रातायमत्यन्तमहं निषिद्धः ।।
एक बार ऐसा हुआ कि मैं अपनी भुजाओं से इस (भाई भरत) को बलात् दूर कर पिता की गोद में जा बैठा। पिता ने 'यह तेरा बड़ा भाई है'-यह बात मनवा कर मुझे वैसा करने से रोका।
हठादपास्ता भरतस्य हस्तान् . मयेक्षयष्टी रुदतोस्य कामम् ।
विधाय खण्डं स्वयमेत्य तातैः , प्रत्यापितं नाववनेरिबास्याः ॥ एक बार मैंने रोते हुए भरत के हाथ से हठात् गन्ने का टुकड़ा छीन लिया। पिताजी स्वयं आए । उसके दो टुकड़े कर हम दोनों भाइयों को एक-एक टुकड़ा दे दिया, मानो कि उन्होंने पृथ्वी के दो भाग कर हमें एक-एक भाग दे दिया हो। ६ गजं विनिर्यनमदवारिधारं , कदाचिदारुह्य चरन् सलीलम् ।
ज्यायानुपादाय हठादपास्तो , मयाम्बरेस्मान्निपतन् धृतश्च । एक बार झरते हुए मदवाले हाथी पर चढ़कर क्रीडा करने के लिए जाते हुए बड़े भाई.
१. बाललीला:-कुमारावस्थाक्रीडाः। २, दन्ताबल :-हाथी (दन्ताबलः करटिकुञरकुम्भिपीलव:-अभि० ४।२८३) . ३. शतहदा-बिजली (प्राकालिको शतहदा-अभि० ४।१७१)