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कथावस्तु
दूत बाहुबली के सामने मौन बैठा था । बाहुबली ने उसके मनोगत भावों को जानकर भरत के साथ बिताये बचपन के कुछ रोचक संस्मरण प्रस्तुत किए। उन्होंने ज्येष्ठ भ्राता भरत के प्रति अपना सहज भ्रातृत्व व्यक्त करते हुए दूत के आगमन का कारण पूछा । दूत ने अपने श्रागमन के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए महाराज भरत के प्रबल पराक्रम और ऐश्वर्य का उल्लेख किया | उनकी सेना के बल पराक्रम का वर्णन करते हुए दूत ने मि और विनमि के पराजय की बात कही। उसने यह भी कहा कि शेष
वें भाई महाराज भरत के अनुशासन को मान्यता दे चुके हैं । अब केवल एक आप ही शेष रहे हैं । दूत ने भरत और बाहुबली के ऐश्वर्य और पराक्रम की तुलना करते हुए बाहुबली को भरत के अनुशासन को स्वीकार करने की प्रेरणा दी । यह सुनकर बाहुबली का मुख लाल हो गया ।
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