SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् नगरी ने स्वयं की शोभा को देखने के लिए पृथ्वीतल पर इस सुन्दर दर्पण की रचना की है ?' ५४. अथ पुरीद्वारमवाप्य संकुलं, रथद्विपाश्वैः स कथंचिदासदत् । प्रवेशमावेश इवान्तराशयं ततक्षमं योगभृतां स विस्मयः ॥ नगरी के द्वार का मैदान बहुत विस्तीर्ण था फिर भी आने-जानेवाले रथों, हाथियों और अश्वों से वह संकुल हो रहा था । विस्मित दूत ने बड़ी कठिनाई से उसमें प्रवेश पाया, जैसे योगियों के विशाल क्षमा वाले अन्तर् आशय में आवेश बड़ी कठिनाई से प्रवेश पाता है । ५५. पुरोन्तरं प्राप्य तटं ५६. , पयोनिधे - रिवोरुमुक्ताफलरत्नराजितम् । चरो दृशं दातुमभून्न तु क्षमो, गजाश्वसंघट्टभयात् सदेपथुः ॥ दूत नगर के मध्यभाग में आया । वह स्थान समुद्र के तट की भाँति अत्यन्त विशाल और मोतियों तथा रत्नों से सुशोभित था । दूत हाथी और घोड़ों के संघट्टन के भय से प्रकंपित होने के कारण उस स्थान को देख ही नहीं सका । ५७. इहाणश्रेणिभिरद्भुतश्रिया, मनोरमाभिः चतुष्क' मागाद् बहुवस्तुसंचय - प्रपातदुः प्रापधरातलं कृतलोचनोत्सवः । त्वसौ ॥ दूत चौराहे पर आया । वहाँ अनेक प्रकार की वस्तुओं का संचय था । कहीं भी धरातल दिखाई नहीं दे रहा था । वहाँ अद्भुत संपदा से युक्त सुन्दर दूकानों की श्रेणियां थीं । उन्हें देखकर दूत की आंखों में उत्सव -सी उतर आया । सुवर्णकुम्भस्तनशालिनीं स्फुरत् सुवृत्तमुक्ताफलराशिसुस्मिताम् । विशालनेत्रां स्फुटविद्रमाघरां चतुष्कभूवारवधूं स ऐक्षत ॥ , दूत ने चौराहे की भूमी को एक वेश्या के रूप में देखा । वह भूमी स्वर्ण के कलशरूपी स्तनों से मंडित, चमकदार गोल मोतियों की राशि के मिष से हंसने वाली, विशाल नेत्रों वाली ( वस्त्रों की विशाल राशि से युक्त ) तथा स्फुट विद्रुम रूपी अधरों वाली थी । १. सवेपथुः — सकम्पः । २. चतुष्कं—चौराहा (चतुष्पथे तु संस्थानं चतुष्कं – प्रभि० ४।५२.) ३. विशालनेत्रां – पृथुवस्त्रां, पक्षे विशालनयनां – पञ्जिका पत्र ४ । ४. वारवधू - वेश्या (अभि० ३।१६७ )
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy