SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् कि वे (मोती) उनके बल से उपाजित यश के प्रतिष्ठापक हों। दूत ! इधर हमारे सुभटों द्वारा उखाड़े हुए, भूमि पर पड़े हुए, हाथियों के दांतों को देखो। २०. इतोपि दोर्दण्डदलीकृतं शिला - तलं निरीक्षस्व घनैरभङ्गुरम् । विरोधिनां वक्ष इवोद्भटर्भट - रभेद्यमच्छेद्यमिदं ह्यविक्रमः ॥ तुम इधर भी देखो। मुद्गरों द्वारा नहीं टूटने वाले ये शिलातल हमारे उद्भट वीरों के भुजादंड से शत्रुओं के वक्ष की भांति चूर-चूर हुए पड़े हैं । निर्बल व्यक्ति के लिए ये शिलातल अभेद्य और अछेद्य हैं। २१. शरैरनावृत्तमुखैमनोतिगे - धनुर्धरैविद्धमनन्यविक्रमः । द्र मावलिस्कन्धमिमं च पश्य नो , महौजसा ह्योजसि कोऽपि विस्मयः ? ' तुम इस वृक्षावलि के स्कंध को देखो। इसे हमारे अत्यन्त पराक्रमी धनुर्धरों ने अनावृत मुखवाले तथा मन से भी अधिक वेगवाले तीरों से वींधा है । महान् पराक्रमी व्यक्यिों की शक्ति के प्रति क्या कोई विस्मय होता है ? नहीं।। २२. सलीलमुत्पाव्य गिरिगजेन्द्रवन् , महाबलैर्नीत इतस्ततः करः। गजरिवानोकह इत्यनेकधा , बलं भटानां कुरु दृष्टिगोचरम् ॥ दूत ! ऐरावत हाथी की भांति महान् पराक्रमी हमारे वीर सुभट अपने हाथों से लीला के साथ पर्वत को उखाड़ कर इधर-उधर ले जाते रहे हैं, जैसे हाथी वृक्षों को उखाड़कर इधर-उधर ले जाते हैं। इस प्रकार हमारे सुभटों के अनेकरूप पराक्रम को तुम देखो। २३. महाभुजैनः प्रभुरीदर्शवृतः, स दुःप्रवर्षो मनसापि वज्रिणा। यदीयदोर्दण्डपविप्रथाहता'; महीभृताः सागरमाश्रयन्ति हि ॥ हमारे स्वामी बाहुबली ऐसे राजाओं से परिवृत हैं कि इन्द्र उन्हें मन से भी पराजित नहीं कर सकता। उनकी भुजारूपी वज्र की धारा से आहत राजा समुद्र में जा आश्रय लेते हैं। यदी २४. अमुष्य नामापि बभूव शूलकृद् , विरोधिनां मूर्धनि निःप्रतिक्रियम्। रसायनं नः प्रणिपाततःप्रभोः, परं न तस्यास्ति महीतलेऽखिले ॥ १. पविः-वज्र (शतकोटि: पविः शम्बो:-अभि० २।६४) २. निःप्रतिक्रियम-प्रतीकाररहितम् ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy