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________________ अष्टादशः सर्गः १. अयाऽयमिन्दीवरलोचनानां , ततान साकेतनिवासिनीनाम् । राजा दृशामुत्सवमागमेन , कुमुद्वतीनामिव कौमुदीशः ॥ महाराज भरत अयोध्या पहुंचे। उन्होंने अपने आगमन से वहां की सुन्दरियों के नयनों के लिए उत्सव पैदा कर दिया जैसे चन्द्रमा कमलिनियों के लिए उत्सव पैदा कर देता है। २. सुलोचनाभिः सममाससञ्जुश्चिरं वियुक्ताभिरथाश वीराः। पयोदराजीभिरिवाब्दकाले , नगा इवानङ्गनिदाघदग्धाः ॥ कामदेव के ताप से दग्ध वीर सुभट लम्बे समय से वियुक्त अपनी स्त्रियों के साथ युक्त हो गये; जैसे वर्षाकाल में पर्वत मेघ की श्रेणी से युक्त हो जाते हैं। ३. सा राजधानी ऋषभाङ्गजस्य , रराज सैन्यविविधः समेतैः।। फुल्लत्सरोजैः सरसीव साक्षादामोददानप्रवणैः प्रभाते ॥ भरत की वह राजधानी अयोध्या विविध प्रकार की सेनाओं से शोभित हो रही थी जैसे प्रभातकाल में सरोवर दूर तक सुगंध फैलाने में साक्षात् प्रवीण विकसित कमलों से शोभित होता है। ४. निःशङ्कमाज्ञा भरतांधिपस्य , ततो व्यहार्षीद् भरतेऽखिलेऽपि । . नदीव मेघागमवारिपूर्णा , महीभृदुल्लङ्घनलब्धवर्णा ॥ पहाड़ों का उल्लंघन करने में निपुण, वर्षा ऋतु में पानी से परिपूर्ण नदी की भांति भरत का शासन निःशंक रूप से समूचे भारत में बरतने लगा। समं समग्राभिरथाङ्गनामिश्चिक्रीड सर्वर्तुविलासलास्यः । तरङ्गिणीनाथ इवापगाभिः , परिस्फुरद्विभ्रमवीचिभिः सः ॥ ३४६
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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