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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् वाला सूर्य भी हमारे प्रतापी स्वामी बाहुबली के बल से आशंकित होकर अपनी किरणों से केवल अंधकार का हरण करता है, ताप नहीं फैलाता ।' लोगों की ऐसी बातें सुनकर वह बहुत विस्मित हुआ। ४. शरच्छशाडूद्यतिपुञ्जपाण्डुरं, स धेनुकं वीक्ष्य गवेन्द्रदूरगम ।
यशा महीभत्तु रिवाङ्गमाश्रितं , ततान नेत्रे विगलत्पयोमहः ॥
दूत ने शरद् ऋतु के चन्द्रमा की कांति-समूह की भांति समुज्ज्वल गायों के समूह को देखा । ग्वाला कहीं दूर खड़ा था। वे गायें ऐसी लग रही थीं. मानो कि महाराज बाहुबली का यश मूर्त हो गया हो। उनसे दूध की धारा झर, रही थी। उन्हें देख दूत की आंखें विस्फारित रह गईं।
५. स सौरभेयी रवलोक्य शङ्कितः, क्वचिच्चरन्तीविविधा वनान्तरे ।
वपुर्यशोभिः सह जुह्वतां जवाद् , द्विषां चिताधूमततीरिवाऽसिताः ॥ दूत वन के किसी प्रान्त-भाग में चरती हुई काली गायों को देखकर शंकित हो गया है. उसने सोचा-क्या अपने यश के साथ-साथ शरीर को भी शीघ्रता से होम देने वाली,, शत्रुओं की चिता से निकलने वाली यह धूम श्रेणी तो नहीं है ?
६. ककुदमतो वीक्ष्य मदोत्कटान मिथः , क्रुधा कलि' संदधतः स दुर्धरान् ।
___गवीश्वरोदीरितभूभृदाज्ञया , निषिद्धयुद्धांश्चकितश्च विस्मितः ॥ उसने दुर्धर और मतवाले बैलों को क्रुद्ध होकर परस्पर लड़ते हुए देखा। किन्तु जब ग्वाले ने यह कहा की लड़ने कि राजाज्ञा नहीं है, तब वे बैल लड़ने से उपरत हो गए । यह देखकर वह दूत चकित और विस्मित रह गया।
७. सगन्धधलीमगसंश्रिताः शिला , निविश्य वासांसि वितन्वतीमहः ।
चरः सुगन्धीनि युवद्वयोः क्वचिद् , बभार निध्याय मुदं वचोतिगाम् ॥ दूत ने कहीं-कहीं युवक-युवतियों के युगलों को देखा। वे युगल कस्तूरीमृग द्वारा
१. धेनुकं-गायों का समूह (धेनूनां (समूहः) धेनुकम्-अभि० ६।५४) २. सौरभेयी-गाय (गौः सौरभेयी-अभि० ४।३३१) पञ्जिका में इसका अर्थ भैस किया है ।। ३. असिता:-श्यामाः । ४. ककुद्मान्-बैल (उक्षाऽनड्वान् ककुद्मान्–अभि० ४।३२३) ५. कलि:-कलह (युद्धं तु संख्यं कलि:-अभि० ३।४६०) ६. गन्धधूलीमृगः–कस्तूरीमृग (कस्तूरी गन्धधूल्यपि-अभि० ३।३०८) ७. युवद्वयी–युव-युवति-युगलानि।