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________________ प्रथमः सर्गः १. अथार्षभिर्भारतभूभुजां बलाद् , हृतातपत्रः स्वपुरीमुपागतः । विमृश्य दूतं प्रजिघाय वाग्मिनं , ततौजसे तक्षशिलामहीभुजे ॥ महाराज भरत भारतवर्ष के राजाओं के छत्र का बलात् हरण कर (छह खंडों को जीतकर) अपनी नगरी अयोध्या में आए। उन्होंने अपने मंत्रियों से परामर्श कर विस्तृत पराक्रम के धनी, तक्षशिला के अधिपति महाराज बाहुबली के पास अपना वाग्पटु दूत' भेजा। २. ततः स दूतो विषयान्तरं रिपो - तो वपुष्मानिव विस्मयं दधौ । रसान्तरं गच्छत एव विस्मयो , ह्यनेकधा भावविलोकनाद् भवेत् ॥ दूत वहां से चलकर शत्रु के देश में आया। जैसे मनुष्य शब्द आदि इन्द्रिय-विषयों में जाता हुआ आश्चर्य पाता है, वैसे ही वह दूत विषयान्तर-दूसरे देश में आकर आश्चर्यचकित रह गया। क्योंकि एक भूमी से दूसरी भूमी (या एक रस से दूसरे रस) में जाने वाले व्यक्ति.को, अनेक भावों के अवलोकन से, विस्मय होता ही है। ३. प्रतापभृत्स्वामिबलाभिशङ्कित - स्तमोहरस्तीक्षणकरों न तापकृत् । करेण दूरादिति वादिनस्त्विहा - वलोक्य लोकान् स विसिष्मियेऽधिकम् ॥ दूत ने लोगों को दूर से यह कहते हुए सुना—'इस बहली प्रदेश में तीव्र किरणों १. आर्षभिर्भरतः -अभि० ३।३५६ २. दूत का नाम सुवेग था—'सुवेगनामानमितिशेषः'–पञ्जिका पत्र १। ३. विषय के दो अर्थ हैं-(१) देश (विषयस्तूपवर्तनम्-अभि० ४।१३) (२) इन्द्रिय-अर्थ (इन्द्रियार्था विषयाः-अभि० ६।२०) ४. रसान्तर के दो अर्थ हैं- (१) रसा+अन्तर–दूसरी भूमी (जगती मेदिनी रसा अभि० ४३) (२) रस-+अन्तर–दूसरा रस (शृंगार आदि)-अभि० २।२०८,२०६॥ ५. तीक्ष्णकर:-सूर्य । ६. मिङ् ईषद्धसने धातोः णबादि प्रत्ययस्य रूपम् ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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