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कथावस्तु
छह खंडों पर विजय प्राप्तकर चक्रवर्ती भरत अयोध्या नगरी में आए । उनका छोटा भाई बाहुबली बहली प्रदेश का राजा था। वह अभी उनके अनुशासन में नहीं आ रहा था। अपनी विजय की अपूर्णता को देख महाराज भरत ने बाहुबली के पास सुवेग नामक दूत को भेजा। वह दूत प्रत्यन्त वाग्पटु और निपुण था। उसने अयोध्या से तक्षशिला की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में उसे अनेक प्रकार के अनुभव हए। बहली प्रदेश की जनता, वीर सुभटों और भूमि-संपदा को साक्षात् करता हुया वह तक्षशिला में पहुंचा। उस समय महाराज बाहुबली सभा में बैठे थे। राजाज्ञा से प्रतिहारी ने दूत को बाहुबली के समक्ष उपस्थित किया। महाराज बाहबली की
राजसभा, शारीरिक संपदा और संपन्नता को देखकर वह स्तब्ध सा रह • गया। हाथ जोड़कर वह बाहुबली के समक्ष बैठ गया।