SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमः सर्गः सेवित शिलाओं पर बैठकर, बार-बार अपने वस्त्रों को सुगंधित कर रहे थे। यह देखकर उसे वचनातीत प्रसन्नता हुई। ८. मुदं ददाताऽनवलोकितेतर - प्रभुः प्रभूताकुरराजिराजिनी । प्रियेव रोमाञ्चवती निजेशितु - wलोकि तेनापि मही फलावहा ॥ दूत ने वहां की पृथ्वी को प्रिया की भांति फलवती देखा। जैसे प्रिया अपने स्वामी को हर्षित करती है, दूसरे पुरुष की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखती, अनेक पुत्रपुत्रियों से शोभित और रोमांचवती होती है वैसे ही बाहुबली की वह भूमि अपने स्वामी को हर्षित करने वाली थी। उसने कभी दूसरा शासक नहीं देखा था। वह प्रभूत अंकुरों की श्रेणी से सुशोभित थी ६. नफल्गु सस्य' परिहाय निस्तुषं , खलेषु गेहं चलिताँस्त्वितीरिणः । क्षितीश्वराजाऽस्य सदैव यालिनी , स वीक्ष्य मान् मुमुदे दिनात्यये ॥ सायंकाल के समय दूत ने लोगों को अपने-अपने खेतों से घर आते हुए देखा। वे अपने खलिहानों में निष्तुष धान को ऐसे ही छोड़कर आ रहे थे। वहां कोई रक्षक नहीं था। वे परस्पर यह कह रहे थे कि बाहुबली की आज्ञा ही इस धान की सद। रक्षा करती है । यह सुनकर वह दूत बहुत आनंदित हुआ। १०. . स निर्वृतिक्षेत्र मुदीक्ष्य दूरतः, स निर्वृतिक्षेत्र विलाससंस्पृहः । . बभूव सर्वो हि विशिष्टवस्तुनि , स्मरेत् सरागं जनमोक्षिते क्षणात् ॥ -दूर से बिना बाड़ वाले क्षेत्र-खेतों को देखकर उसके मन में अपनी निर्वस्त्र क्षेत्रकान्ता के साथ क्रीड़ा करने की अभिलाषा उत्पन्न हुई। यह सच है कि सभी मनुष्य विशिष्ट वस्तु को देखकर क्षण भर में अपने रागी जन की स्मृति करने लग जाते हैं। १. नृफल्गु-आरक्षकजनरहितम् । . २. सस्यं-धान, (धान्यं तु सस्यं-अभि० ४।२३४) ३. खलं-खलिहान (खलधानं पुनः खलम्-अभि ४।३५) ४. दिनात्यये—सन्ध्यासमये । ५. यहाँ क्षेत्र का अर्थ है-खेत (क्षेने तु वप्रः केदार:-अभि० ४।३१) __ निवृतिक्षेत्र अर्थात् बाड़रहित खेत । ६. यहाँ क्षेत्र का अर्थ है-स्त्री (दाराः क्षेत्रं वधूर्भार्या-अभि० ३।१७७) निर्वृतिक्षेत्र अर्थात् निर्वस्त्र कान्ता।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy