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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् भरत ने कुपित होकर दृढमुष्टि से बाहुबली की छाती पर प्रहार किया। उस मुष्टिप्रहार से बाहुबली का शरीर अत्यन्त पीडित हो गया।
४३. उच्छवासानिलपरिपूर्णनासिकोऽसौ , तद्घातोच्छलितरुषा करालनेत्रः ।
निःशङ्कप्रति भरतं तदा दधाव , भोगीन्द्र गरुड इवाहितापकारी ॥ उस प्रहार से उत्पन्न रोष के कारण बाहुबली की आंखें विकराल हो गई । उसकी नासिका उच्छवास की वायु से भर गई। वह निःशंक होकर भरत की ओर दौड़ा, जैसे सर्प को पीड़ित करने वाला गरुड़ सर्पराज की ओर दौड़ता है। ... ४४. अत्यन्तोद्धतकरपक्षतिद्वयेनोल्लाल्यायं गगनमनायि तेन रोषात् ।
___ सोऽपि द्राग् नयनपथं व्यतीत्य यातो , योगीवाद्भुतमहिमावदातसिद्धिः॥ बाहुबली ने अपने अत्यन्त उद्धत हाथों से भरत को ऊंचा उठाकर रोष से आकाश में फेंक दिया। वह शीघ्र ही आंखों से दीखना बन्द होकर आगे चला गया, जैसे अद्भुत . महीमा वाली पवित्र सिद्धियों का धनी योगी अदृश्य होकर आगे चला जाता है। ४५. द्वे सैन्ये अपि चरमाद्रिपूर्वशैलप्रातःश्रीनिभृतमुखाम्बुजे तदास्ताम् ।
निविण्णो बहलिपतिश्च लोकमानो, व्योमात मुहुरिति संततान चिन्ताम् ॥ उस समय भरत की सेना का मुख-कमल अस्ताचल पर गए हुए सूर्य की आभा वाला तथा बाहुबली की सेना का मुख-कमल उदयाचल पर आए हुए सूर्य की आभा वाला हो रहा था । उदासीन बाहुबली ने आकाश की ओर, बार-बार देखा और उसके मन में यह चिन्ता उत्पन्न हुई४६. सोदर्योद्दलनकरी भुजद्वयो मेऽभूदेवं प्रसमरवाग्भरादकोत्तिः ।
कोतिर्वा भरतपतेः क्षतिः क्षितीशादित्यासीद् बहलोपतिर्न तत् किमूहे ? 'मेरी ये दोनों भुजाएं भाई को पीड़ित करनेवाली सिद्ध हुई हैं'-इस प्रकार फैलने वाली वाणी से मेरी अकीति होगी अथवा ऐसी कीत्ति होगी कि एक सामन्त राजा के द्वारा भरतपति की क्षति हुई है ? बाहुबली इस प्रकार वितर्कों में खो रहा था । ऐसा कौन सा वितर्क था जो उस समय बाहुबली ने नहीं किया ?
४७. इत्यन्तर्मनसि महीपतौ रथाङ्गी , गौचर्य नयनपथस्य संचचार ।
आदध्र भुजयुगलेन चान्तरिक्षादायान्तं बक इव संवरं स एनम् ॥ १. करपक्षति:-करमूलः 'हाथ' इति भाषायाम् । २. गौचर्यम्-गोचरस्य भावः गौचर्य विषयतामित्यर्थः। ३. संवर:-मत्स्य (संवरोऽनिमिषस्तिमि:--अभि० ४।४१०)