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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् ७५. चालिते नृपतिना भुजवज्र , गोत्र पक्षनिवहा इव सर्वे । . ते निपेतुरवनीरुहशाखालम्बिनो वय' इवानिलवेगात् ॥ भरत के द्वारा अपने भुजा-वज्र को हिलाने पर वे सब सैनिक पर्वतों के पंख-समूह की भांति वैसे ही भूमी पर आ गिरे, जैसे वृक्ष की शाखा पर बैठने वाले पक्षी पवन के वेग से नीचे आ गिरते हैं।
७६. प्रत्ययं तरसि भारतनेतुश्चक्ररद्भुततया भटधुर्याः।
इन्दवीय महसीव चकोराः, संमदं मुहुरुदीक्षणतीवाः ॥ . यह देखकर भरत के वीर सैनिकों में अपने स्वामी के सामर्थ्य के प्रति आश्चर्यकारी विश्वास हो गया । जैसे ऊंची ग्रीवा कर देखने की तीव्र इच्छा वाला चकोर चन्द्रमा की किरणों को देखकर प्रसन्न होता है, वैसे ही वे प्रसन्न हो गए। .
७७. स्वस्वनायकैबलाम्यधिकत्वान् , मेनिरे तृणमिवाहितवर्गम्।
सैनिका विजयलाभविवृद्धोत्साहसाहसमनोरमचित्ताः॥ वे सैनिक अपने-अपने स्वामी की शक्ति की अधिकता से शत्रुवर्ग को तृण की भांति मानने लगे । उनका चित्त विजय-प्राप्ति के लिए प्रवृद्ध उत्साह और साहस से मनोरम हो रहा था। ७८. गीर्वाणानां वाक्यमेतद् विशालं , मध्ये चित्तं श्रद्दधानौ नरेन्द्रौ ।
नीत्वा श्यामां तामशेषां दिनादौ., देवोद्दिष्टामीयतुयुद्धभूमिम् ॥ दोनों राजाओं-भरत और बाहुबली ने देवताओं की विशाल वाणी को चित्त में धारण कर सारी रात बिताई। प्रातः काल होते ही देवता द्वारा निर्दिष्ट रणभूमी में दोनों आ गए।
७६. ये पातिता रिपुभिरायुधघोरपातः , सर्वेपि ते भरतराजपुरोधसा. द्राक् ।
सज्जीकृता नृपतिबाहुबले लेपि , तद्वच्च चन्द्रयशसा युधि रत्नमन्त्रैः॥ रणभूमी में शत्रु सैनिकों द्वारा आयुधों के तीव्र प्रहार से भरत के जो वीर सुभट घायल हो गए थे, उन सबको भरत के पुरोहित ने मंत्रों द्वारा शीघ्र स्वस्थ कर पुनः सज्जित
१. गोत्र:-पर्वत । २. वयस्-पक्षी। ३. इन्दोः भवं इन्दवीयम् । भवार्थे ईय प्रत्ययः । ४. पुरोधस्-पुरोहित (पुरोधास्तु पुरोहित:-अभि० ३.३८४)
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