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________________ षोडशः सर्गः ३२३ कर दिया । इसी प्रकार बाहुबली की सेना में भी जो सुभट घायल हो गए थे, उन सबको चन्द्रयशा ने रत्न और मंत्रों द्वारा स्वस्थ कर सज्जित कर दिया। ८०. पवमानरयोधुतधूलिभरैर्जलशीकरसेकनिषिक्तधरैः । विबुधैविदघे कुसुमप्रचयोपचिता रणभूरथ कौतुकिभिः॥ कुतूहली देवताओं ने सारी रणभूमी को फूलों से उपचित कर डाला। वे हवा के वेग से धूलिकणों को उड़ाकर पानी द्वारा भूमी को सींच रहे थे । ८१. कि मार्तण्डद्वयाढया किमुत हुतवहद्वन्द्वदीप्रा चकास देहोत्साहद्वयोयुक् किमुत रणमही गजिहर्यक्षयुग्मा । मेरुद्वन्द्वाभिरामा किमुत सुरनरैस्तकितेत्थं तदानीं, ताभ्यां भूमीधराभ्यामुदयति तरणौ पूर्णपुण्योदयाभ्याम् ॥ सूर्योदय के समय अत्यन्त पुण्यशाली महाराज भरत और बाहुबली–दोनों के रणक्षेत्र में उतरने पर देवताओं ने उस समय यह वितर्कणा की—क्या यह रणभूमी दो सूर्यो से संपन्न हुई है ? अथवा दो अग्नियों से दीप्र हो रही है ? अथवा शरीर के उत्साहद्वय से युक्त है ? अथवा हाथी और सिंह--इस युग्म से सहित है ? अथवा दो मंदर पर्वतों से शोभित हो रही है ? . -इति गीर्वाणवचःस्वीकरणो नाम षोडशः सर्गः
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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