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________________ ३२० 'भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् युद्ध-विधि में दक्ष भुजा वाले उस बाहुबली के इस प्रकार कहने पर देवता भी प्रसन्न हुए और कुतूहलवश आकाश में जा बैठे। ऐसा कौन कौतुकी होगा जो देखने का इच्छुक नहीं होगा ? ६४.. एतदाजिमवलोकयतो मे , स्वस्थितिर्बहुतरेव भवित्री। इत्यवेक्ष्य तरणिः परि लिल्ये , पश्चिमां नववधूमिव रागात् ॥ 'इस युद्ध को देखते हुए मेरी स्थिति बहुत ही लम्बी हो जाएगी'---ऐसा सोचकर सूर्य ने, नववधू की भांति पश्चिम दिशा का आसक्ति से आलिंगन कर लिया ।' ६५. तौ तदैव च निवर्तयतःस्म , वेत्रिभिः प्रहरणाग्निजवीरान् । देवतोक्तमिति वृत्तमशेषं , तत्पुरो कथयतां च विशेषात् ॥ उसी समय भरत और बाहुबली–दोनों ने अपने-अपने प्रहरियों को भेजकर अपने वीर सुभटों को युद्ध से निवर्तित कर दिया। उनके समक्ष देवताओं द्वारा विशेष रूप से कथित सारा वृत्तान्त रखा। ६६. तनिशम्य बहलीश्वरवीराश्चेतसीति जहषुः परितळ । नास्मदीश्वरबलोबलबाहुः , कोऽपि तज्जयरमाधिपतिर्न ॥ यह सुनकर बाहुबली के वीर मन में यह सोचकर हर्षित हुए कि हमारे स्वामी से बढ़ कर कोई दूसरा अत्यधिक भुज-पराक्रमी नहीं है। उनकी विजयलक्ष्मी का स्वामी भी कोई दूसरा नहीं है। ६७. भारतेश्वरभटास्त्विति दध्युविक्रमाधिकभुजो बहलोशः। चक्रभृच्च सुकुमारशरीरस्तज्जयः स्पृशति संशयदोलाम् ॥ चक्रवर्ती भरत के वीरों ने मन में यह सोचा-'बाहुबली की भुजाएं अधिक शक्तिशाली हैं। चक्रवर्ती भरत सुकुमार शरीर वाले हैं। इसलिए उनकी विजय संशयास्पद है।' ६८. भूभुजोऽत्र विभवन्ति चमूभिः , सर्वतोऽधिकबला न भुजाभ्याम् । ताः पुनः समनुशील्य नृपास्तत् , सङ्गराय विदधत्यभियोगम् ॥ सर्वत्र राजे सेनाओं के द्वारा अधिक बलशाली होते हैं , न कि भुजाओं के द्वारा। वे सेनाओं का सम्यग् अनुशीलन कर युद्ध के लिए उद्यम करते हैं। ६९. भूभृतः परिजनैश्च धनैश्च , प्रोत्सहन्ति समराय न दोाम् । किङ्करैस्तु नृपतिर्य भि रक्ष्यो , दैन्यजुक् प्रभुमृतेः किल सैन्यम् ॥
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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