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________________ षोडशः सर्गः । १. स्वःसदोऽपि गगनादवतेयुद्धमीदृशमवेक्ष्य तदीयम् । बोधनाय वृषभध्वजसून्वोर्बोध एव परमं नयनं हि ॥ ऋषभदेव के दोनों पुत्रों के इस प्रकार के युद्ध को देखकर, उनको प्रतिबोध देने के लिए देवता आकाश से नीचे उतरे । क्योंकि प्रतिबोध ही उत्कृष्ट आंख है। २. · सैनिकाः ! किल युगादिजिनो वः, सेतुरस्तु समरकपयोंघेः। मां वदन्त इति नाकिन ईयुर्लध्य एव न हि देवनिदेशः॥ 'सैनिको ! इस युद्ध रूपी समुद्र के लिए हमारे ऋषभ देव सेतु के रूप में हों'-यह कहते हुए देवता भूमि पर आए । नेवता का आदेश अनुल्लंघनीय होता है। ३. केऽपि कार्मुकसमर्पितबाणाः, केपि तूणकलिताङ्गुलयश्च । केपि कोशरहितासिकराला, मुक्तमुद्गरगदा अपि केचित् ॥ ४. वैरिशस्त्रनिहतैरिहशूरैः, संकटो व्यरचि किं सुरलोकः ? . यत् सुरैः समरतो विनिषिद्धास्ते वयं त्विति वदन्त इदानीम् ॥ ५. सिंहनादमुखरा अपि केचितू, वैरिणो मम पुरो क्षतकायाः। यंद् व्रजन्ति महती युधि लजा, भाविनीति सुभटा निगदन्तः॥ ६. स्यन्दनध्वजनिवेशितकायाः, केऽपि वारणवरार्पितदेहाः । भालपट्टनिपतच्छमबिन्दुभ्राजिनः कलितवाजिन एके ॥ ७. दोभृतः सुरगिराथ निषिद्धाः, श्रीयुगादिजिनशासनवत्या । चित्रचैत्यरचनां कलयन्तस्तस्थुराहवरसोत्सुकचित्ताः॥ –पञ्चभिः कुलकम् । कुछ योद्धाओं मे धनुष्य पर बाण चढा दिए थे। कुछ की अंगुलियां तूणीर से बाण निकालने में तत्पर थीं। कुछ म्यान से तलवारें निकाले हुए भयंकर लग रहे थे। कुछ सुभट मुद्गर और गदा का मुक्त प्रहार करने में तत्पर थे। उस समय वीर
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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