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________________ ३०२ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् जैसे बादलों से मुक्त सूर्य अधिक तेजस्वी होता है, वैसे ही गारुडिक मंत्रों द्वारा पांशों से मुक्त होकर अधिक तेजस्वी बने हुए शार्दूल ने सुगति से कहा११४. विद्याधर ! मयेव त्वं , हन्तव्यस्तरवारिणा । . इत्युक्त्वा सुगतिर्मृत्योस्तूर्णं तेनातिथीकृतः॥ 'विद्याधर ! मेरे द्वारा ही तुम इस तलवार से मारे जाओगे'—यह कहकर शार्दल ने तलवार का प्रहार किया और सुगति को शीघ्र ही मृत्युधाम पहुंचा दिया। ११५. चक्रिज्येष्ठसुतोप्युच्चैर्गाहमानोऽरिवाहिनीम् । विद्याधरधराधीशं , मितकेतु जघान च ॥ इधर चक्रवर्ती भरत का ज्येष्ठपुत्र सूर्ययशा भी शत्रु सेना का तीव्रता से अवगाहन करता हुआ आया और उसने विद्याधरों के अधिपति मितकेतु को मार डाला। ११६. व्योमेव रविचन्द्राभ्यां , लोचनाभ्यामिवाननम् । ___ चक्रं चक्राङ्गभृद्भातुर्विद्याभृद्भ्यामृतेऽभवत् ॥ . जैसे सूर्य और चन्द्रमा के बिना आकाश तथा आंखों के बिना मुंह शोभाहीन होता है, वैसे ही चक्रवर्ती भरत के भाई बाहुबली की सेना दोनों विद्याधरों के बिना शोभाहीन हो गईं। ११७. सद्यो विद्याधरद्वन्द्ववधात् क्रुद्धः सुतैर्वृतः। . , आयोधनधरां बाहुबलिः स्वयमवातरत् ॥ विद्याधर-युगल के वध से क्रुद्ध होकर बाहुबली स्वयं अपने पुत्रों से परिखत होकर युद्ध-भूमी में उतर आया। ११८. कालपृष्ठकलम्बासविस्फारमुखरा दिशः। आशाधीशानितीवोचुः , पश्यतास्य पराक्रमम् ॥ बाहबली के धनुष्य के बाणों के क्षेपण से विस्फारित मुख वाली दिशाओं ने दिशाधीशों से कहा-'इस वीर का आप पराक्रम देखें ।' ११९. चलताप्यचला ! यूयं , यातु विश्वा रसातलम् । कुरुताशागजाः! स्थानं , रोदसी' यास्यथः क्व वाम् ॥ १. विश्वा-पृथ्वी (विश्वा विश्वम्भरा धरा–अभि० ४।१) २. रोदसी—आकाश और पृथ्वी का सम्मिलित नाम (अभि० ४।५)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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