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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम्
यह सुनकर चक्रवर्ती के अन्य पुत्र तथा वीर सुभट प्रसन्न हुए। रात को ज्यों-त्यों बिताकर, सब रणभूमी में उतर आए ।
१०२. सन्नद्धाः शस्त्रसंपूर्णा, भटा बाहुबलेरपि ।
अवतेरू रणक्षोणों, चन्द्रकन्यामिव द्विपाः ॥
बाहुबली के वीर सुभट भी सम्पूर्ण रूप से शस्त्रों से सज्जित होकर रणभूमी में उसी प्रकार उतरे जैसे हाथी नर्मदा नदी में उतरते हैं ।
१०३. सैन्ये सूर्ययशाः सूर्यो, व्यराजत रथस्थितः । तमांसीवारिवृन्दानि नाशयन् निजतेजसा ॥
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रथ पर आरूढ सूर्ययशा सेना में सूर्य की भांति शोभित हो रहा था । जैसे सूर्य अपने तेज से अंधकार को नष्ट कर देता है वैसे ही वह शत्रु समूह को नष्ट कर
रहा था ।
१०४. भ्रातरः कोटिशस्तस्य, शालायाः पुरोऽभवन् । क्षत्रियक्षेत्रसंप्राप्तजन्मशौर्याङ्कुरा इव ॥
उसके शार्दूल आदि करोड़ों भाई उससे आगे हो गए, मानो क्षत्रिय के शरीर में जन्म से संप्राप्त शौर्य के अंकुर फूट पड़े हों ।
१०५. विद्याधरधरेन्द्रौ ताववग्राहाविवोद्धतौ । चक्रभृध्वजिनीवृष्टिध्वंसाय पुनरागतौ ॥
विद्याधरों के अधिपति मितकेतु और सुगति - दोनों उद्धत वीर 'सूखे' की भांति चक्रवर्ती की सेना रूपी वृष्टि का ध्वंस करने के लिए पुनः रणभूमी में आ गए।
१०६. हस्तापितधनुर्बाणो, मितकेतुर्नभश्चरः ।
आरौत्सीत् सूर्य यशसं मनोभूरिव शंवरम् ॥
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हाथ में धनुष्य और बाण लिए विद्याधर मितकेतु ने सूर्ययशा को वैसे ही रोका, जैसे कामदेव 'शंवर' को रोकता है ।
१०७. विद्याभृत् सुगतिस्तदवच्छाई लमरुधत् ततः ।
आसीद् युद्धं तयोर्घोरं विस्मायितसुरासुरम् ॥
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१. चन्द्रकन्या – नर्मदा नदी ।
२. शंवर:- कामदेव का शत्रु (अरी शंवरशूर्पको – अभि० २।१४२ )