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________________ पञ्चदशः सर्गः ३εहं 'राजन् ! आपके पुत्रों के देखते-देखते बाहुबली के वीरों ने आपकी सेना को वैसे ही तोड़ डाला जैसे हाथी कमलिनी को तोड़ देता है ।' ६. त्वत्तुल्याः सन्ति ते पुत्रा, ज्ञातिदाक्षिण्यमोहिताः । युयुत्सन्तेन सर्वेऽपि क्षत्राणां नोचितं ह्यदः ॥ ‘आपके सभी पुत्र आपके सदृश हैं, किन्तु बन्धुजनों के दाक्षिण्य से मोहित होकर युद्ध लड़ना नहीं चाहते । यह क्षत्रियों के लिए उचित नहीं है ।' ६७. " 25. अप्यम्बातात वर्गणाः, क्षत्रियैर्वैरिणः किल । हन्तव्या योद्धुमायाताः, शुभं नैषां ह्यपेक्षणम् ॥ 'माता और पिता वर्गीय बंधुजन यदि शत्रु बन कर युद्ध लड़ने के लिए आते हैं, तो क्षत्रियों का कर्त्तव्य है कि वे उनको मार डालें । उनकी उपेक्षा करना शुभ नहीं होता ।' दाक्षिण्यं क्रियते येन, कथं जेता स सङ्गरे । fक पोतः परिहीयेत; तोयनाथं तितीर्षता ? 'जो उनके प्रति अनुकूलता दिखाता है । वह संग्राम में विजयी कैसे होगा ? क्या समुद को तैरते हुए कोई व्यक्ति अपनी नौका छोड़ देता है ?" EE. प्रागेव समरारम्भो, मुधा चक्रे त्वया विभो !। अपि वर्गहराः पुत्राः प्रमाद्यन्ति तवात्र यत् ॥ 'प्रभो ! आपने युद्ध के आरंभ की पहल व्यर्थ ही की, जब कि शत्रुओं के कवचों का हरण करने वाले आपके ये पुत्र भी युद्ध में प्रमाद दिखा रहे हैं ।' १००. इत्याकर्ण्य वचस्तस्य क्रुद्धः सूर्ययशा जगौ । 1 प्रातर्बाहुबल मुक्त्वा, सर्वान् हन्तास्म्यहं त्विति ॥ सेनापति की यह बात सुनकर भरत का ज्येष्ठपुत्र सूर्ययशा क्रुद्ध होकर बोला'प्रातःकाल ही मैं बाहुबली को छोड़कर और सभी सुभटों को मौत के घाट उतार दूंगा ।' १०१. इत्युक्ता मुदिताश्चक्रिसूनवोऽन्येऽपि दोभृतः । कथञ्चन त्रियामां तामतीत्येयू रणक्षितिम् ॥ १. दाक्षिण्यं - अनुकूलता ( दाक्षिण्यं त्वनुकूलता – अभि० ६ १३ )
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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