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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् जैसे सर्प कंचुकी को छोड़कर भाग जाता है, वैसे ही कुछ शत्रु-सुभट संग्राम-भूमी को छोड़कर भाग गए। जैसे कंजूस व्यक्ति उदारता को छोड़ देता है, वैसे ही कुछ सुभटों ने वीरता के व्रत को छोड़ दिया।
६०. सैन्यं भारतशक्रस्याऽसंख्यं संख्येयतां गतम् ।
प्राभातिकमिव व्योम , चरिष्णुमिततारकम् ॥ जैसे रात्रिकाल में आकाश में अपरिमित तारे होते हैं, किन्तु प्रभातवेला में वे परिमित ही रह जाते हैं, वैसे ही चक्रवर्ती भरत की सेना जो असंख्य थी- अपरिमित थी, वह भी संख्या में ही रह गई-परिमित ही रह गई।
६१. उत्साहाद् द्विगुणीभूते , बले च बहलोशितुः। .
अल्पीयांसोऽपि भूयांसः , सोत्साहा युधि यद् भटाः॥ .
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बाहुबली की सेना उत्साह से दुगुनी हो गई। क्योंकि युद्धकाल में उत्साहित सुभट थोड़े होने पर भी बहुत होते हैं।
६२. इत्यसादृश्यमालोक्य , सैययोः पतिरचिषाम् । ,
वेगादऽस्ताद्रिमालीनः , कालक्षेपो हि भद्रकृत् ॥
इस प्रकार दोनों पक्षों की सेनाओं की असदृशता देखकर सूर्य शीघ्र ही अस्ताचल पर जा छुपा । क्योंकि कालक्षेप कल्याणकर होता है। .
६३. स्कन्धावारं ततो यातां , स्वं स्वं सैन्ये उभे अपि ।
___ मनःसंप्राप्तविश्राम, कर्णनेत्रे इवेन्द्रिये ॥
दोनों सेनाएं अपने-अपने शिविरों में चली गई, जैसे कान और आँख दोनों इन्द्रियां विश्रान्त मन में चली जाती हैं।
१४. चक्रिपुत्रेषु शृण्वत्सु , सेनानीरेत्य चक्रिणम् ।
अभ्यधत्त वचस्त्वेवं , साहसोत्साहमेदुरम् ॥
सेनापति सुषेण चक्रवर्ती भरत के पास आया और चक्रवर्ती के पुत्र सुन सके वैसे साहस और उत्साह से स्निग्ध वाणी में बोला
६५. राजन् ! पुत्रेषु पश्यत्सु , भवदीयेष्वभज्यत ।
चमूर्बाहुबलेर्वोरैः, पद्मिनीव गजैस्तव ॥