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________________ २६६ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् चक्रवर्ती भरत की सेना के वीर सुभट वैर का बदला ले लिये जाने पर तुष्ट हुए। बलवान् क्षत्रिय के मारे जाने पर कौन प्रसन्न नहीं होता? ७८. तथा कोपानलोऽदीपि , दोष्मतां बहलोशितुः । चक्रिगृह्यास्तृणानीव , दंदान्तेस्म तैर्यथा ॥ इस पर बाहुबली के पराक्रमी सुभटों की क्रोधाग्नि भभक उठी। उन्होंने चक्रवर्ती के सैनिकों को तिनके की भांति जलाना प्रारंभ कर दिया। ७६. कृतान्तकरसंकाशा , गदाः शत्रुगदावहाः। उल्ललन्तिस्म पत्यश्वस्यन्दनेभक्षयंकराः॥ बाहुबली के सुभट यमराज के हाथ के सदृश, वैरियों के लिए रोग पैदा करने वाली और पैदल सेना, अश्व, रथ तथा हाथियों का नाश करने वाली गदाएं चला रहे थे । ८०. रत्नारिरितामित्रः, सकूटस्थगदाद्र मः। कल्पान्तपवनोत्क्षिप्तपर्वताभस्तदाऽपतत् ॥ . . तब शत्रुओं को वारित करने वाला विद्याधर 'रत्नारि' हाथ में प्रलयकाल के पवन से उखड़े हुए पर्वत के सदृश शाश्वत गदा रूपी वृक्ष को लेकर चक्रवर्ती की सेना पर टूट पड़ा। , ८१. अनेन पतता युद्धे, कालवन्य नुकारिणा। देहे चक्राङ्गभृत्सैन्यारण्यं बाणस्फुलिङ्गकैः॥ काल रूपी अग्नि की भांति भयंकर 'रत्नारि' जब युद्ध में उतरा तब बाणों से उछलने वाले स्फूलिंगों से चक्रवर्ती की सेना रूपी अरण्य जलने लगा। . ५२. कामं तेन समाकान्तां , कामिनेव विलासिनीम् । चमू वीक्ष्य निजं चक्री , न्यदिक्षत् स्वचरान् युधि ॥ जैसे कामुक व्यक्ति कामिनी को अत्यन्त आक्रान्त कर डालता है, वैसे ही 'रत्नारि' ने चक्रवर्ती की समूची सेना को आक्रान्त कर डाला । यह देखकर चक्रवर्ती ने अपने सुभटों को युद्ध के लिए निर्देश दिया । ५३. विद्याधरधरेन्द्रण , महेन्द्रण महौजसा। शिरोऽचूर्यत रत्नारेर्मुद्गरेणामकुम्भवत् ॥
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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