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________________ पञ्चदशः सर्गः २६५ ७२. चक्रे भङ्गं तुरङ्गाणां , रथानां रोधमातनोत् । पत्तीनां च विपत्ति स , ददौ दतिरेकतः॥ उसने घोड़ों को मार डाला और रथों को रोक डाला । उसने अपने दर्प के अतिरेक से पैदल सेना के लिए विपत्ति खड़ी कर दी। ७३. गजारूढेन सोऽदर्शि , क्रीडन्निति रथाङ्गिना। कासार इव सैन्ये स्वे , कवसं भृशमुल्ललन् । हाथी पर आरूढ चक्रवर्ती ने शस्त्र उछालते हुए उस अनिलवेग को अपनी सेना में क्रीड़ा करते हुए देखा, जैसे तालाब में कोई क्रीडा कर रहा हो। ७४. मुमोचास्मै ततश्चक्र, संवीक्ष्यार्कमिवासहम् ।। स कौशिक इवानश्यत् , खद्योतस्तरणेः कियानु ? तब भरत ने उसकी ओर चक्र फेंका। सूर्य की भांति असह्य तेजवाले चक्र को देखकर वह अनिलवेग उलूक की भांति वहां से भाग गया। सूर्य के समक्ष जुगुनू कितनी देर तक टिक सकता है ? ७५. शक्त्या निर्माय सोऽविक्षत् , कीरवद् वज्रपञ्जरम् । गत्वा चक्रौतुना यञ्च , कृतान्तातिथिरादघे ॥ अनिलवेग ने अपनी विद्या-शक्ति से एक वज्रमय पञ्जर का निर्माण किया और वह एक तोते की भांति उसमें प्रविष्ट हो गया । तब चक्र रूपी बिडाल ने पास जाकर उसे यमराज का पाहुना बना दिया, मार दिया । ७६. चक्रणानीय तन्मौलिरदर्यत रथाडिने । नृपाः साक्षात्कृते कृत्ये , प्रत्ययन्ते निजेषु हि ॥ चक्र ने अनिलवेग के सिर को लाकर चक्रवर्ती भरत को दिखाया। क्योंकि राजा कार्य को प्रत्यक्ष दिखा देने पर ही अपने निजी व्यक्तियों पर विश्वास करते हैं, अन्यथा नहीं। ७७. वैरनिर्यातनात् तुष्टा , वीराश्चक्रभृतस्ततः । हते बलवति क्षत्रे , मुदं को नाम नोवहेत् ॥ १. कवसः-एक प्रकार का आयुध (आप्टे डिक्शनरी) २. वैरनिर्यातनं-विरोध का बदला लेना (वैरनिर्यातनं वैरशुद्धिर्वैरप्रतिक्रिया-अभि० ३।४६८)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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