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________________ पञ्चदशः सर्गः २६३ उनके भीषण कर्म (युद्ध) को देखकर सूर्य डरता हुआ तत्क्षण अपनी किरणें समेटकर अस्ताचल की गुफा में जा छुपा । ६१. अवहार' विधायतौ, सैन्ये शिविरमीयतुः । प्राक्प्रतीचिपयोराशिवेले इव निजं पदम् ॥ दोनों ने युद्ध स्थगन किया । पूर्वीय और पश्चिमी समुद्र की वेला की भांति दोनों पक्षों की सेनाएं अपने-अपने शिविरों में चली गईं । ६२. पुनः प्रभातमासाद्य, युयुत्सेतेस्म ते बले । वृद्ध द्विगुणोत्साहे, पतदायुधदुर्धरम् ॥ प्रभात होने पर दोनों सेनाओं ने बढ़े हुए दुगुने उत्साह से, आयुधों के प्रहार अत्यन्त दुर्धर युद्ध लड़ा । ६३. प्रावर्तन्त शराः स्वरं रणे प्रेतपतेरिव । " सैनिकान् कवलीकर्तुं सैन्ययोरुभयोरपि ॥ रणभूमी में दोनों ओर की सेनाओं के बाण यमराज के बाणों की भांति सैनिकों को मारने के लिए यथेच्छा से चलने लगे ।. ६४. पत्रिपत्रानिलोद्धूताः पतिताः करिणां कुथाः । नालक्ष्यन्त हयोद्भूतरजः पिहितवर्ष्मणा ॥ 1 बाणों के पंखों से उठी हुई हवा से कंपित होकर हाथियों के भूल नीचे गिर पड़े । घोड़ों के खुरों से उद्धृत रजःकणों से ढंके हुए शरीर वाले सैनिकों को वे दीख नहीं रहे थे । ६५. आगच्छद्भिश्च गच्छद्भिः कङ्कपत्रैविहायसा । चक्रे, ज्योतिरिङ्गण संभ्रमम् ॥ स्वर्णपुंखैरलं , आकाश-मार्ग से आते हुए (नीचे गिरते हुए) तथा जाते हुए स्वर्ण - पुंखों वाले बाणों ने जुगुनूओं का संभ्रम पैदा कर डाला था । ६६. दोष्मतां खरसंघातघात रक्ताञ्चितांशुकैः । जयश्रीरामसंस्मारो, बहिर्यात इवान्तरात् ॥ १. अवहारं - स्थगनम् । २. कुथ: - हाथियों का झूल (कुथे वर्णः परिस्तोमः - अभि० ३ | ३४४ ) ३. ज्योतिरिङ्गणः - खद्योत (खद्योतो ज्योतिरिङ्गणः - अभि० ४। २७९ )
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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