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________________ २८८ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् किसी वीर सुभट ने पताका, राजा, घोड़े और सारथि सहित रथ को उठाकर ढेले की भांति दूर फेंक दिया । ३१. हास्तिका' श्वीय पादाग्रैमदिताः पातिता भुवि । शूरत्वं कलयामासुः केचित् स्वामिपुरो भटाः ॥ जमीन पर गिराए हुए तथा हाथियों और घोड़ों के चरणों से मर्दित कुछ वीर सुभट अपने स्वामी के समक्ष अपनी वीरता का व्याख्यान कर रहे थे । ३२. रिक्तीबभूवुः केषांचिद्, निषङ्गा विशिखव्रजैः' । कषायैरिव निर्ग्रन्यास्तोयैरिव शरद्धनाः ॥ कुछ वीर सुभटों के तरकस (तूणीर) बाणों से रिक्त हो गए, जैसे निर्ग्रन्थ कषायों से और शरद् ऋतु के बादल पानी से रिक्त होते हैं । ३३. अत्रु गुगं कश्चिच्चापदोष्णोविरोधितः । मन्युमानिव सौजन्यमजन्यमिव पुण्यवान् ॥ किसी वीर ने अपने विरोधी के धनुष्य और भुजा के गुण को वैसे ही तोड़ डाला जैसे क्रोधी पुरुष सौजन्य को और पुण्यवान् पुरुष उपद्रव (पाप) को तोड़ डालता है, नष्ट कर देता है । ३४. 1 भग्ने चापे कृपाणेऽपि कुन्ते कुण्ठे भवत्यपि । दोभिः शौर्य रसोदकाद् युयुत्स्यतेस्म कैश्चन ॥ ३५. 1 कुछ योद्धाओं ने अपने धनुष्य और कृपाण के टूट जाने तथा भाले के कुंठित हो जाने भी शक्तिरस के अतिशय से भुजाओं से युद्ध लड़ा । पर इतः सुषेण: सेनानीरितः सिंहरथो भटान् । सेनानीरिव गीर्वाणान् सोत्साहान् कलयेऽकरोत् ॥ , इधर सेनापति सुषेण और उधर सेनापति सिंहरथ -- दोनों अपनी-अपनी सेनाओं के बीर १. हास्तिकं - हाथियों का समूह ( हास्तिकं तु हस्तिनां स्यात् – अभि० ६।५४ ) २. अश्वीयं - घोड़ों का समूह ( अश्वानामाश्वमश्वीयं -- अभि० ६।५६ ) ३. विशिखः - बाण । ४. धनुष्य पक्ष में गुण का अर्थ है - डोरी और भुजा के पक्ष में उसका अर्थ हैं— शक्ति । ५. सेनानीः कात्तिकेय ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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