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________________ २८६ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् तीर चलाने वाले वीर योद्धाओं के कृपाण हाथियों के कुंभस्थल पर वैसे ही शोभित हो रहे थे जैसे पर्वतों के शिखरों पर बादलयुक्त विद्युत् के समूह शोभित होते हैं। . १९. उड्डीयेभकपोलेभ्यो , लीनाः क्वापि शिलीमुखाः । एष्यच्छिलीमुखातङ्कादास्यसाम्यं हि दुःसहम् ॥ आने वाले बाणों के आतंक से भयभीत होकर भौंरे हाथियों के कपोलों से उड़कर कहीं चले गए । क्योंकि मुंह की समानता दुःसह होती है। (भौंरों के मुंह भी तीखे होते हैं और बाणों के अग्रभाग (मुख) भी तीखे होते हैं। इसलिए संस्कृत में दोनों का नाम है-शिलीमुख)। २०. केषांचिल्लूनमौलीनां , युद्धोत्साहाद् धनुर्भृताम् । कबन्धा अप्ययुध्यन्त , ह्यभिप्रायानुगं वपुः ॥ शिर कटे हुए कुछ धनुर्धरों के युद्धोत्साह के कारण उनके धड़ भी लड़ रहे थे । क्योंकि शरीर अभिप्राय के पीछे-पीछे चलता है। ' २१. गदाभिः स्यन्दनाः कश्चिच्चूरिताः शुष्कपत्रवत् । अपात्यन्त गजेन्द्राश्च , वनभिन्नाद्रिशृङ्गवत् ॥ कुछ सुभटों ने रथों को गदा द्वारा सूखे पत्ते की भांति चूर-चूर कर डाला । कुछ सुभटों ने बड़े-बड़े हाथियों को वज्र से आहत पर्वत-शिखर की भांति नीचे गिरा डाला। २२. वीराः केचिद् रणोत्थाष्णुभुजचण्डिमविताः । वैरिणं क्षणमाश्वास्य , योधयामासुरञ्जसा ॥ कुछ वीर रण में स्फूर्त भुजाओं की प्रचंडता से गर्वित होकर वैरियों को क्षण भर के लिए आश्वस्त कर फिर शीघ्र ही युद्ध करने लगे । २३. भटाः केचिद् बलौद्धत्यात् , क्रीडाकन्दुकहेतुजान् । शताङ्गाश्चतुरङ्गाश्च , सहेलमुदपाटयन् ॥ कुछ वीर सुभटों ने अपने बल की उद्धतता के कारण शतांग और चतुरंग रथों को खिलौने की भांति लीलापूर्वक उखाड़ फेंका। १. पाठान्तरं-अलीभाः। २. पाठान्तरं-मुखातङ्कान्नास्यसाम्यं ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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