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________________ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् २८४ ६. पत्तिभिः पतयः स्तम्बेरमै गा हयैर्हयाः। स्यन्दनः स्यन्दना इत्थमयुध्यन्त परस्परम् ॥ पैदल सैनिकों के साथ पैदल सैनिक, हाथियों के साथ हाथी, घोड़ों के साथ घोड़े और रथों के साथ रथ-ये सब परस्पर युद्ध लड़ रहे थे। ७... सैन्ययो:रधुर्याणां , पूर्व चेलुः शिलीमुखाः। ___ जयश्रियमिवान्वेष्टुं, स्थानान्तरनिवेशिनीम् ॥ ८. तीक्ष्णांशुकरसंतप्तं , व्योम वीजयितुं त्विव । कोदण्डकोटिनिर्मुक्तपत्रिपत्रविधूननैः ॥ -युग्मम् । दोनों सेनाओं के वीर सुभटों के तीर पहले ही चल पड़े, मानो कि वे दूसरे स्थान में निवास करने वाली जयश्री को खोजने के लिए चलें हों अथवा सूर्य की तीक्ष्ण किरणों से संतप्त आकाश को, धनुष्यों से छूटे हुए बाण रूपी पंखों से हवा झलने के लिए चलें हों। ६. गुणरिव शरैलॊकत्रितयो व्यानशेतराम । तदानीं भटकोटीनां , सङ्गरोत्सङ्गसङ्गमे ॥ उस समय रणभूमी के उत्संग में दोनों सेनाओं के.संगम से लाखों सुभटों के धनुष्यों से छूटे हुए बाण तीनों लोकों में गुणों की भांति व्याप्त हो गए। १०. क्षरदूधिरधाराभो , रञ्जिता अपि पत्रिणः। उद्यन्तो रेजिरेऽत्यन्तं , तरणेः किरणा इव ॥ झरती हुई रुधिर की धारा से रंजित ऊपर जाते हुए बाण भी सूर्य की किरणों की भांति अत्यन्त शोभित हो रहे थे। ११. क्वचिन्नासीरवीराणां , विकोशासिवराः कराः। समुद्यद्विादुद्योता , जलदा इव रेजिरे ॥ कहीं-कहीं आगे चलने वाली सेना के वीर सुभटों के, म्यान से निकाली हुई तलवारों से युक्त हाथ, चमकती हुई बिजली से उद्योतित बादलों की भांति शोभित हो रहे थे। १२. चक्रिणश्चक्रचीत्कारैर्घण्टानादैश्च कुञ्जराः। हेषितैस्तुरगा ज्ञेया , आसन रेणुतमोभरे ॥
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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