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उन्होंने कहा – 'मंत्रीवर्य ! इस रणस्थली में महाराज भरत के जो महान् योद्धा हैं और जो विशेष रूप से सेना का पथ-दर्शन करने के लिए विश्रुत हैं, तुम निःशंक और निर्भय होकर उन सबके नाम, ध्वज - चिन्ह, यान और घोड़ों के विषय में बताओ ।'
६७.
महायुधा ये युधि भारतेया, विशिष्य नासीरतया प्रतीताः । निःशङ्कमातङ्कमपास्य तेषामाशंस नामध्वजयानवाहान् ॥
तवाग्रजोऽयं स गजाधिरूढो, महाभुजो भारतराजराजः ।
यस्य प्रभावान्निलयान् विहाय गुहागृहा एव भवन्त्यमित्राः ||
तब मंत्री ने कहा - 'राजन् ! हाथी पर आरूढ ये आपके बड़े भाई भुजंबली चक्रवर्ती भरत हैं । इनके प्रभाव से शत्रुगण अपने घरों को छोड़कर गुहावासी ही हो जाते हैं ।'
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भरतबाहुबलि महाकाव्यम्
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सात हेतुः पुरुहूत' केतु विजेतुकामों निखिलारिवर्गम् ।
अन् सुषेणेन रणे नृपोऽयं न्यषेधि लोभेन यथा विवेक: ।।
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'इन्द्र के ध्वज-चिह्न वाला चक्रवर्ती समस्त शत्रुवर्ग को जीतने के सहेतुक अभिप्राय से जब रण में जा रहा था तब सुषेण सेनापति ने उसे वैसे ही रोका जैसे लोभ विवेक को रोकता है ।'
६८. अयं सुषेण ध्वजिनीमहेन्द्रो हर्यक्षकेतुर्युधि धूमकेतुः । पत्युः पुरश्चालयते रथं स्वं गौरांशुगौराश्वजुषं प्रसह्य ॥
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'यह है सुषेण सेनापति । यह युद्ध में अग्नि की भाँति सब कुछ भस्म करने वाला है । इसका ध्वज चिह्न सिंह है । यह अपने स्वामी भरत के आगे-आगे श्वेत किरणों की भाँति श्वेत अश्वों से युक्त रथ को स्वयं वेग के साथ चला रहा है ।'
जयी सुषेणानुज एष कोक केतुः कपोताभहयः पुरस्तात् । रथाधिरूढः समराय चैति निस्त्रिशपाणिर्जगदेकवीरः ॥
'यह सुषेण सेनापति का छोटा भाई 'जयी' है । ' चकवे' के ध्वज- चिह्न वाला यह वीर कबूतर के रंगवाले घोड़ों से युक्त रथ पर आरूढ़ होकर युद्ध के लिए आगे जा रहा है । इसके हाथ में तलवार है और यह जगत् का एकमात्र वीर है ।'
१. पुरुहूतः -- इन्द्र ।
२. कोक: - चकवा (कोको द्वन्द्वचरोऽपि च - अभि. ० ४ | ३६६ )