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चतुर्दशः सर्गः
२७५ 'स्तुतिपाठक शिरोमणी बृहस्पति ने जो कहा उसकी उपेक्षा कर सेनापति सुषेण ने चक्रवर्ती की सेना में प्रलयकालीन मेघ की भांति शत्रुओं के प्राणों का हरण करने वाला भयंकर सिंहनाद किया।'
६०. प्रादुर्बभूवुर्युगपत्तदैव , पञ्चास्यनादा भटसानुमद्भ्यः ।
नितान्तसंभ्रान्तिकराधिकारा , गर्जेविरावा इव वारिदेभ्यः ॥
उस समय सुभट रूपी पर्वतों से एक साथ सिंहनाद होने लगे । वे सिंहनाद बादलों से उठे हुए गर्जारव की भांति नितान्त संभ्रान्ति पैदा करने वाले अधिकार से युक्त थे ।
६१. ससंभ्रम विश्वमपीह विश्व , बभूव विश्वापि चलाचलेयम् ।
दिक्कुञ्जरास्त्रासमुपेत्य तस्थुश्चित्रार्यलीला इव सर्वतोऽपि ॥ ६२. उज्जागरा मन्दरकन्दरस्था , द्राक् किन्नराः पाणिनिमील्यनेत्राः। बभूवुरत्यजकाः स्त्रियोऽपि , तः सिंहनादर्भटकुञ्जराणाम् ॥
-युग्मम् । उन सिंहनादों से सारा विश्व व्याकुल हो गया और सारा भूमंडल कांप उठा। चारों ओर से त्रस्त होकर दिक्-कंजर चित्र में चित्रित लीला करने वालों की भांति स्तब्ध हो गए। श्रेष्ठ योद्धाओं के सिंहनाद को सुनकर मन्दर की कन्दराओं में रहने वाले जागृत किन्नर भी शीघ्र ही हाथों से आँखें बंद कर बैठ गए। स्त्रियां भी बच्चों को दूर छोड़, भयभीत होकर बैठ गईं।
६३. टंकाररावा भटचापकोटिकोटिभ्य एताः प्रथिमानमुच्चैः ।
कल्पान्तकालाम्बुधिजिभीमा , दिक्कुञ्जकुक्षिभरयः प्रसस्रः॥
सुभटों के कोटि-कोटि धनुष्यों से उठने वाले टंकार दूर-दूर तक फैल गए। वे प्रलयकाल के समुद्र के गर्जारव की भांति भयंकर थे। वे दिशाओं के कोने-कोने में व्याप्त हो गए।
६४. इतः स्वयं तक्षशिलाधिपोऽपि , भ्रातुः सुतान् वेदयितुं सुतानाम् ।
___ भ्रूसंज्ञयाऽपृच्छदमात्यधुर्य , सुमन्त्रनामानमनामिताङ्गः ॥
इधर तक्षशिला के अधिपति उन्नत अग वाले महाराज बाहुबली ने स्वयं अपने पुत्रों को भाई के पुत्रों का परिचय देने के लिए अपने प्रधान मंत्री सुमंत्र को भौंहों के इशारे से कहा (पूछा)।