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________________ २७४ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् 'विहरण की क्रीड़ा करते हुए इस अनिलवेग ने शत्रुओं की युवतियों को हार से शून्य किया है। उसने प्रमदाओं की विचित्र अभिव्यक्तियों को देखकर विशेषरूप से मद प्रदर्शित किया । ५५. रत्नारिरेष प्रकटप्रतापश्चाङ्गकेतुर्भटचक्रचक्री। __गर्जन गदाव्यग्रकरः समेति , सावज्ञनेत्रो रणवामधुर्यः ।। 'यह सुभट शिरोमणी रत्नारि है। इसकी तेजस्विता अत्यन्त स्पष्ट है। इसका ध्वज-चिन्ह है हंस । इसकी आंखों से वंरियों के प्रति अवज्ञा का भाव झांक रहा है। यह युद्ध की प्रतिकूल स्थितियों को सहन करने में अग्रणी है। देखो, इसका हाथ गदा से व्यग्र है और यह गर्जता हुआ आ रहा है।' ५६. अयं नमेराहवकौशलस्य , सैन्यप्रभो ! स्मारयिता तवैव। गजध्वजस्तुङ्गगजाधिरूढो , भुजोष्मणा हारयिता हरेः किम् ? ' 'हे सेनापते ! यह रत्नारि आपको युद्ध -कौशल में नमि की याद दिला देगा। हाथी के ध्वज-चिन्ह वाला यह वीर उन्नत हाथी पर आरूढ़ है। क्या इन्द्र अपनी भुजाओं की ऊष्मा से इसे हरा सकता है ?' ५७. नानास्त्रयानध्वजशालिनोऽमी , सहस्रशोऽन्येपि रणं समेताः । उद्वाहवो बाहुबलेः क्षितीशा , यथोत्सवाः पुण्यकृती निकेतम् ॥ 'अनेक प्रकार के अस्त्र, यान और ध्वजा वाले ये वीर सुभट तथा हजारों दूसरे राजे इस रण में समागत हैं। बाहुबली के पक्ष के ये सभी भूपाल उद्बाहु हैं । जैसे उत्सव पुण्यशाली पुरुषों के लिए निकेतन होते हैं, वैसे ही ये वीर पराक्रम के निकेतन हैं।' ५८. एकोप्यजय्यो युधि चैष राजा , भटैः किमेभिः परिवारितोऽयम् । विलोकनीयो न दृशापि तिग्ममरीचिवद्वासरयौवनान्तः ॥ 'युद्ध में यह अकेला राजा भी अजेय है। सुभटों से परिवृत होने पर इसका कहना ही क्या ? तीक्ष्ण रश्मि वाला सूर्य वैसे ही आँखों से नहीं देखा जा सकता, फिर मध्यान्ह वेला में उसे देखने की बात ही क्या ?' ५९. इत्युक्तवन्तं मगधक्षितीशमुपेक्ष्य सैन्याधिपतिः सुषेणः । क्ष्मेन्दोयुगान्ताब्द इव व्यमुञ्चत् , क्ष्वेडां परप्राणहरीमनीके ॥ १. वासरयौवनान्तः-वासरस्य यौवनं-मध्यान्हं, तस्य अन्तः—मध्यः ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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