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चतुर्दशः सर्गः .
२७३ सदा एकरूप रहता है । इस विजेता वीर की भुजदंड को खुजली वैरियों की छाती में प्रहार करने से ही दूर हो सकती है।' .
५०. सोयं विनीलाश्वरथी कनीयान् , सर्वेषु पौत्रेषु युगादिनेतुः ।
विपत्करी पत्ररथेन्द्र'केतोर्भुजद्वयी यस्य चिरं रिपूणाम् ॥
'नीले घोड़ों वाले रथ पर आरूढ यह वीर ऋषभदेव के पौत्रों में सबसे छोटा है। इसका ध्वज-चिन्ह गरुड़ है। इसका बाहु-युगल वैरियों के लिए चिरकाल तक विपत्ति उपस्थित करने वाला है।'
५१. महाबलाल्यो बलसिन्धनाथः , पित्रा निषिद्धोऽपि रणाय तूर्णम् ।
धावत्यसो तीर इवास्त्र मुक्तस्तेजस्विनो यल्लघवोऽपि वृद्धाः ॥
'यह महाबल पराक्रम का समुद्र है । पिता के द्वारा निषेध करने पर भी यह युद्ध के लिए धनुष्य से मुक्त तीर की भांति वेग से दौड़ता है। क्योंकि तेजस्वी लघु होने पर भी महान होते हैं।'
५२. उपात्तनानायुधयानलीला , लक्षत्रयो बाहुबलेः सुतानाम् ।
. एवं बलौद्धत्यरसाज्जगन्ति , तृणन्ति तेजस्विषु किं नु चित्रम् ?
'बाहुबली के तीन लाख पुत्र नाना प्रकार के आयुध और यानों से सज्जित हैं। इस प्रकार वे अपने उद्धत पराक्रम से समूचे जगत् को तृणवत् मानते हैं । तेजस्वी के लिए ऐसा करने में आश्चर्य ही क्या है ?'
५३. विद्याधरेन्द्रोऽनिलवेग एष , व्यालध्वजो व्यात्तमुखोऽभ्युपैति ।
युधि द्विषद्ग्रासकृते तरस्वी , रथेन चित्राश्वयुजा खमार्गात् ॥
'विद्याधरों का अधिपति यह अनिलवेग चितकबरे घोड़ों से युक्त रथ पर आरूढ होकर आकाश-मार्ग से मुंह बांए आ रहा है । इसका ध्वज-चिन्ह सर्प है। यह युद्ध में शत्रुओं का ग्रास करने में अत्यन्त पराक्रमी है।'
५४. वितन्वताऽनेन विहारलीला , विहारलीला' युवती रिपूणाम् ।
विलोक्य चित्र प्रमदाप्रकाशं , मदप्रकाशं च कृतं विशेषात् ॥ १. पत्ररथेन्द्रः-पत्ररथ का अर्थ है पक्षी । पक्षियों का इन्द्र-गरुड़ । २. अस्त्रम्-धनुष्य (धनुश्चापोऽस्त्रमिष्वास:-अभि० ३।४३६) ३. विहारलीलाः -विगता हारस्य लीला यासां, ताः विहारलीलाः (द्वितीयाया बहुवचनम् ) ४. मदप्रकाशं--अन मदप्रकाश: इति युक्तम्।