SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ ... भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् ४५. अयं बलानां पुर एव दृश्यो , रविब्रहाणामिव तेजिताशः। पुनः पुनश्चापभृतो रणाय , प्रणोदयन् स्कन्द' इवादितयान्॥ 'जैसे समस्त ग्रहों में दिशाओं को दीप्त करने वाला सूर्य आगे देखा जाता है वैसे ही यह वीर सेनाओं के आगे ही देखा जाता है। जैसे कात्तिकेय देवताओं को प्रेरित करता है वैसे ही यह धनुर्धारी वीर सुभटों को युद्ध के लिए बार-बार प्रेरित करता है।' ४६. सैन्याग्रवर्ती किल सिंहसेनः , सेराह'वाजी शरभ ध्वजोयम् । .. यन्नाममात्राद् द्विषदङ्गनाभिविहाय हारांश्च कचा ध्रियन्ते ॥..' 'सेना के आगे चलने वाला यह सिंहसेन है। इसके अश्व सफेद और ध्वज-चिन्ह अष्टापद है। इसके नाम-मात्र से भयभीत होकर वैरियों की स्त्रियां अपने हारों को छोड़कर (अपनी वेणी को निर्बन्ध कर अपनी छाती पर) केशों को धारण करती हैं।' ४७. चापादवारोपयदेष किञ्चिद् , रथी गुणं न स्वयमभ्यमित्रम् ।। सुधीः कृतज्ञत्वमिव स्वचित्तादनन्यसौजन्यरसोऽभिरामात् ॥ 'यह रथी (सिंहमेन) शत्रुओं की ओर तानी हुई धनुष्य की प्रत्यंचा को स्वयं कभी नहीं उतारता, जैसे असाधारण सौजन्य वाला सुधी अपने कमनीय चित्त से कृतज्ञता के भाव को नहीं उतारता।' ४८. श्येनध्वजः सादितशत्रु पक्षः , पराक्रमी विक्रमसिंह एषः । क्रियाह वाहः किल कुन्तधारी , पितुनिदेशं स्वयमीहते द्राक् ॥ 'इसका नाम विक्रमसिंह है। यह अत्यन्त पराक्रमी और शत्रुपक्ष को जीतने वाला है। इसका ध्वज-चिन्ह है बाजपक्षी और अश्व हैं लाल। इसके हाथ में भाला है और यह अपने पिता की आज्ञा की शीघ्रता से प्रतीक्षा कर रहा है।' ४६. अयं रथी वैरिभिरेकमूर्तिः , सहस्रधा लोक्यत एव युद्धे । दोर्दण्डकण्डूतिरमुष्य जेतुः, प्रत्यर्थिवक्षोभिरतो व्यपास्या॥ 'रथ पर आरूढ इस वीर को शत्रुओं के सुभटों ने हजारों बार युद्ध में देखा है। यह १. स्कन्द:-कात्तिकेय । २. आदितेया:-देवता (अभि० २।२) ३. सेराहः-अमृत या दूध के समान रंगवाला (घोड़ा) (पीयूषवणे सेराहः-अभि० ४।३०४) ४. शरभः-अष्टापद (शरभः कुञ्जराराति:-अभि० ४।३५३) ५. क्रियाहः-लाल (घोड़ा) (क्रियाहो लोहितो हयः-अभि० ४।३०४)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy