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चतुर्दशः सर्गः
२७१ 'यह रहा बाहुबली का पुत्र चन्द्रयशा। इसकी पताका का चिह्न है-चन्द्रमा । यह चन्द्रमा की आभा वाले रथ पर आरूढ़ हैं। जब यह रुष्ट हो जाता है तब शत्रुओं की स्त्रियों में अपने कंकणों के अस्थिर होने की चिन्ता व्याप्त हो जाती है।'
४१. अयं पुनर्बाहुबलेः पुरस्तादाविर्भवत्याजिकृते कनिष्ठः।
भृशं निषिद्धोऽपि शिवं यियासुर्यती कषायरिवबद्धकक्षः ॥
'जैसे मोक्ष जाने का इच्छुक यति कषायों से रोका जाता है, वैसे ही यह चन्द्रयशा अपने छोटे भाइयों द्वारा बहुत रोके जाने पर भी युद्ध करने के लिए बद्धकक्ष होकर बाहुबली के आगे-आगे चल रहा है।'
४२. अस्यानुजन्मा दलितारिजन्मा , महायशाः स्यन्दनसंनिविष्टः ।
कूर्मध्वजः कोकनदाश्व' एष , पितुः पुरस्ताद् बहुधाभियुंक्ते ॥
'यह है कूर्म की ध्वज-चिन्ह वाला, रथं पर बैठा हुआ चन्द्रयशा का छोटा भाई महायशा । इसके रथ में लाल घोड़े जुते हुए हैं। यह शत्रुओं का नाश करने वाला है। यह अपने पिता के समक्ष बहुधा उद्यमशील रहा है।'
४३. शिलीमुखास्त्वस्य शरास'मुक्ताः, प्रत्यथिहृत्कुम्भभिदे भवन्ति ।
पतन्ति नेत्राश्रुजलानि तेषां , मृगेक्षणानामिति चित्रमेतत् ॥
‘धनुष्य से छूटे हुए इसके .बाण शत्रुओं के हृदय रूपी कुंभ का भेदन करने वाले होते हैं । तब उन शत्रु-सुभटों की स्त्रियों की आंखों से आंसू टपकने लग जाते हैं । यह विचित्रता है। (वाण तो लगते हैं वैरियों के हृदय रूपी घट में और आँसू निकलते हैं उनकी स्त्रियों की आंखों से—यह आश्चर्यकारी है।)
४४. अयं रथी सिंहरथो नसिंहः , सिंहध्वजः सिन्धुहयश्च सिंहः ।
प्रत्यथिनां साम्प्रतमुग्रतेजा , उदेष्यति स्वैरमथाहवाय ॥
'रथ पर आरूढ इस रथी का नाम सिंहरथ है । इसका ध्वज-चिन्ह सिंह और इसके घोड़े सिंधुदेश के हैं । यह पुरुषों में श्रेष्ठ और शत्रुओं के लिए सिंह के समान है । यह प्रचण्ड तेजस्वी वीर युद्ध के लिए पर्याप्त रूप से उदित होगा, चमकेगा।'
१. कोकनदाश्वः-लाल घोड़ा (लाल कमल को 'कोकनद' कहते हैं। कोकनद की छवि वाला __ घोड़ा (लालघोड़ा)। २. शरास:-धनुष्य (धनुश्चापोऽस्वमिष्वासः--अभि० ३।४३६)