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________________ चतुर्दशः सर्गः . . २६६ उस समय दोनों सेनाओं के स्तुतिपाठकों के कोलाहल भरे शब्दों से पुष्ट वाद्य-शब्द क्रमशः दिगन्तों तक पहुँच गए मानो यशस्वी व्यक्तियों की कीत्ति के वे गुप्तचर हों। . ३१. तूर्यस्वनैर्वन्दिरवातिपीनः , प्रवृद्धिमाप्त सिंहनादैः। हेषारवः स्यन्दनचक्रचक्रचीत्कारगाढर्ययिरे दिगन्ताः ॥ स्तुतिपाठकों के शब्दों से मिश्रित होकर तुरी के शब्द और अधिक घने हो रहे थे। वे सारे शब्द सुभटों के सिंहनाद से बढ़ रहे थे। उन शब्दों में घोड़ों की हिनहिनाहट और रथों के चक्कों की चीत्कारें भी मिश्रित हो गईं । इस प्रकार वे शब्द और ज्यादा गाढ़ होकर दिगन्तों में व्याप्त हो गये । ३२. दिवस्पृथिव्यौ कुरुतः कलि कि , केनापि कृत्येन च दम्पतीव। कि व्योमगङ्गाऽद्य विलोड्यते वा , दिक्कुञ्जरौहि तदेति लोकः ॥ तब लोगों ने यह वितर्कणा की-क्या आकाश और पृथ्वी एक दम्पती की भाँति किसी प्रयोजनवश कलह कर रहे हैं अथवा क्या आज दिक्कुंजर आकाशगंगा का विलोडन कर ३३. समन्ततो लक्षचतुष्कयुक्ताशीतिहयस्यन्दनकुजराणाम् । रणांगणे.षण्णवतिनकोट्यो , रथाङ्गपाणेर्भवतिस्म सज्जा ॥ उस रणभूमी में चक्रवर्ती भरत की सज्जित सेना इस प्रकार थी-चार लाख अस्सी हजार हाथी, घोड़े और रथ तथा छियानवे कोटि पैदल सेना। . ३४. धीरं मनो बाहुबले टानां , चमूममूं भारतवासवस्य । नालोक्य कम्पेत सुरेन्द्रधर्यविकम्पिनी स्वगिभिरित्यकि ॥ देवताओं ने यह वितर्कणा की-'इन्द्र के धर्य को भी प्रकंपित करनेवाली भरत की इस सेना को देखकर बाहुबली के सुभटों का मन डांवाडोल नहीं हुआ, यह उनके धीर मन का परिचायक है। ३५. सहस्रकोटीशतलक्षवीरप्रयोधिनो योधवरास्तदानीम् । राजे न्यवेद्यन्त सनामपूर्व , सौस्नातिकारितवैरिवाराः ॥ उस समय सूचना अधिकारी महाराज भरत को शत्रु-समूह पर विजय पाने वाले १. सौस्नातिक:-सूचना अधिकारी।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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