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________________ २६८ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् २६. संकेतिताजेर्जगतीं जगाम , स राजराजो विहिताभियोगः'। . भूयस्तनूजैश्च समन्वितो द्राक् , क्षत्रव्रतो मूर्तिमिवोपपन्नः ॥ -त्रिभिविशेषकम् । अनेक पुत्रों से परिवृत अत्यन्त उत्साही चक्रवर्ती भरत निर्दिष्ट रणभूमी में जा पहुँचे । वे ऐसे लग रहे थे मानो कि क्षत्रियपन मूर्त होकर आ गया हो। उस समय दस लाख युद्ध-वाद्य, अठारह लाख भेरियाँ तथा सोलह लाख युद्ध के नगाड़े बज रहे थे। इनके साथ-साथ स्फूर्तिमान् मंगल-पाठकों के समूह चक्रवर्ती भरत के वंश में हुए वीर पुरुषों के कुल और नाम का कीर्तन कर रहे थे। भरत आगे चल रहे थे और उनके पीछे-पीछे महान् शब्द हो रहे थे। २७. पीयूषपाथोधिमहोमिगौरी , द्वयोर्ध्वजिन्योरपि मागधोक्ता। भोगावली' श्रीजिननाभिसूनुस्तुतिप्रधाना मुहुरुल्ललास ॥ . . उस समय दोनों ओर की सेनाओं में भी स्तुतिपाठकों द्वारा कृत जिनेश्वर देव ऋषभ की स्तुतिमय तथा सुधा समुद्र की महान् ऊर्मियों की भांति शुभ्र विरुदावली बार-बार उल्लसित हो रही थी। २८. चमूरियं वैरिचमं विलोक्य , केतुच्छलाद व्योमनि नृत्यतीव । समानतां प्राप्य रणे विवादे , न कोपि नृत्येद् विजयाभिलाषी ? भरत की सेना अपनी शत्रु-सेना को देखकर पताका केव्याज से मानोआकाश में नर्तन करने लगी। विवाद और रण में समानताको पाकर कौन विजयाभिलाषी पुरुष नहीं नाच उठता ? २९. ते कोशलातक्षशिलाधिपत्योविरेंजतुस्तुल्यतया ध्वजिन्यौ। प्राचीनपाश्चात्यमहोमिमालावेले इवान्योन्यसमागमेच्छे ॥ एक ओर कोशल देश के अधिपति महाराज भरत की सेना और दूसरी ओर तक्षशिला के अधिपति महाराज बाहुबली की सेना समान रूप से वैसी लग रही थी जैसे पूर्व और पश्चिम के समुद्र की वेला एक-दूसरे से समागम करने की इच्छुक हो। ३०. अनीकयोर्वाधरवास्तदानीं , सद्वन्दि'कोलाहलकामपीनाः। प्रापुदिगन्तांस्तदनुक्रमेण , यशोधनानामिव कीतिचाराः ॥ १. अभियोग:-उद्यम, पराक्रम। २. भोगावली-विरुदावली (ग्रन्यो भोगावली भवेत्-अभि० ३।४५६) ३. वन्दी-स्तुतिपाठक (वन्दी मङ्गलपाठक:-अभि० ३।४५८)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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