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________________ २६६ . . भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् १५. गीर्वाणशृङ्गारसुनामधेयं , दधौ शिरस्त्राणमसौ स्वम । राकासुपूर्वाद्रिरिवाभिपूर्ण , शशाङ्कबिम्बं नयनाभिरामम् ॥ उन्होंने अपने सिर पर 'गीर्वाणशृंगार' नाम वाले शिरस्त्राण को धारण किया, जैसे पूर्णिमा के दिन उदयाचल पर्वत पूर्ण मण्डल वाले नयनाभिराम चन्द्रबिम्ब को धारण करता है। १६. जयः कलापोऽक्षयकङ्कपत्र 'स्ततो द्वितीयोऽपि पराजयश्च । . इत्यस्य पार्श्वद्वितये निषङ्गौ , भातःस्म पक्षाविव पक्षिराजः ॥ उन्होंने अपनी दोनों बाहुओं पर अक्षय तीरों से भरे हुए दो तूणीर धारण किये । एक का नाम था 'जय' और दूसरे का नाम था 'पराजय' । वे दोनों तूणीर ऐसे शोभित हो रहे थे जैसे पक्षिराज गरुड़ के दोनों ओर दो पाँखें शोभित होती हैं। १७. त्रैलोक्यदण्डं कलयाञ्चकार , करे स कोदण्डमुदग्रतेजः। अधिष्ठितं दानववैरिवृन्दः, सचन्दनारण्यमिव द्विजिह्वः ॥ भरत ने 'त्रैलोक्य दंड' नाम के प्रचंड तेज वाले धनुष्य को हाथ में लिया। वह धनुष्य देवताओं के समूह से वैसे ही सेवित था जैसे कि सर्पो से चन्दनवन सेवित होता है। १८. स दैत्यदावानलनामधेयं , जग्राह खड्गं निहतारिवर्गम् । अष्टाङ्गुलानूनकरप्रमाणं, सहस्रदेविनिषेव्यमाणम् ॥ उन्होंने शत्रुओं के समूह को मृत्युधाम पहुँचाने में समर्थ 'दैत्यदावानल' नामवाला खड्ग धारण किया। वह खड्ग एक हाथ आठ अंगुल प्रमाणवाला और हजारों देवों द्वारा सेव्यमान था। १९. पुरोहितोदीरितमङ्गलाशीस्तुङ्ग नगोत्सङ्गमिव द्विपारिः। आरोहदुच्चैः करिणं रथाङ्गपाणिः कुरुक्ष्मापतिदत्तपाणिः ॥ पुरोहित ने आशीर्वचन सुनाया। जैसे सिंह हाथी की ऊंची पीठ पर जा बैठता है वैसे १. राका-पूर्णिमा (सा राका पूर्णे निशाकरे-अभि० २।६३) २. कलापः-तूणीर (शरधिः कलापः-अभि० ३।४४६) ३. कङ्कपत्रः-तीर (पत्रीष्वजिह्मगशिलीमुखकङ्कपत्र:-अभि० ३।४४२) ४. निषङ्गः-तूणीर (तूणो निषङ्गस्तूणीर:-अभि० ३।४४५) ५. पक्षिराज:-गरुडस्य ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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