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त्रयोदशः सर्गः
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'राजन् ! आप अवज्ञा से उसका त्याग न करें। जैसे शय्या सहज होती है, वैसे ही राजाओं में भी धीरता सहज होनी चाहिए। ये सभी सुसज्जित भट और आपके ये पुत्र जय प्राप्त होने तक आपकी आज्ञा से युद्ध लड़ने की इच्छा रखते हैं।'
५०. अयं नभोवा भविताद्य संकुल: , सकौतुकाकूतनभश्चरागमः।)
वितयं ताराभिरितीव दृश्यताऽनुपाश्रिता ह्यतिकरः परागमः ॥
'आज कुतूहलवश आने वाले विद्याधरों से यह आकाशमार्ग संकुल हो जाएगा'-ऐसी वितर्कणा कर तारे भी लुप्त हो गए। क्योंकि अपने स्थान में दूसरों का आगमन पीड़ाकारक होता है। .
५१. हरिन्नवोढेव च शातमन्यवी', नितान्तमाम्यत तिग्मतेजसा ।
अपश्चिमोर्वीधरवाससद्मनि , प्रक्लुप्तकश्मीररुहाङ्गरागिणी ॥
पूर्वाचल के वासगृह में रहने वाली तथा कुंकुम का अंगराग की हुई पूर्व दिशा को सूर्य ने नवोढा की भाँति आक्रान्त कर डाला।
५२. तमाल तालीवनराजिविभ्रमं, तमो निलिल्येऽस्तमहीधरोदरम् ।
उदित्वरे भास्वति संभवेत्तरां , कियच्चिरं क्षोणिप ! कश्मला स्थितिः ?
'तमाल और ताली वनराजि जैसा अत्यन्त काला अन्धकार अस्ताचल के उदर में विलीन हो गया। राजन् ! प्रकाशवान् सूर्य के उदित होने पर मलिन स्थिति (अंधकार) कितने काल तक टिक सकता है ?
५३. ' विभो ! तवालोकरवं ददत्यमूदिशः प्रभातोत्थविहङ्गमारवैः॥
इयं रणक्षोणिरपीहतेतरां, भवन्तमेकान्तसतीव वल्लभम् ॥
'प्रभो ! ये दिशायें भी प्रभातकाल में होने वाले पक्षियों के कलरव से आपके लिए प्रकाश का गीत गा रही हैं । जैसे पवित्र सती अपने प्रियतम को ही चाहती है वैसे ही यह रणभूमी भी आपको चाह रही है।'
१. शातमन्यवी-ऐन्द्री-पूर्व दिशा । (Belonging or relating to Indra-Apte.) २. कश्मीररुहः-कुकुम (कश्मीरजन्म घुसृणं-अभि० ३।३०८) ३. तमाल:-तमालवृक्ष (तापिञ्छस्तु तमालः स्यात्-अभि० ४।२१२)